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देश बहुसंख्यकों से नहीं, संविधान से चलेगा; ओवैसी ने जस्टिस शेखर यादव को जजों की आचार संहिता याद दिलाई

प्रयागराज में विश्व हिन्दू परिषद के लीगल सेल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर यादव के कठमुल्ला शब्द का इस्तेमाल करने और 'देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा' कहने पर एआईएमआईएम के चीफ असद्दुदीन ओवैसी ने आपत्ति की है।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तानMon, 9 Dec 2024 08:42 PM
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प्रयागराज में विश्व हिन्दू परिषद के लीगल सेल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर यादव के कठमुल्ला शब्द का इस्तेमाल करने और 'देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा' कहने पर एआईएमआईएम के चीफ असद्दुदीन ओवैसी ने आपत्ति की है। ओवैसी ने जस्टिस शेखर यादव को जजों की आचार संहिता की याद दिलाते हुए कहा कि देश बहुसंख्यकों से नहीं, संविधान से चलेगा।

ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जजों के लिए बनाई गई आचार संहिता 'न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन' का हवाला देते हुए जस्टिस यादव की बातों पर आपत्ति उठाई है। कहा कि न्यायाधीश ने 'कठमुल्ला' शब्द का इस्तेमाल किया और भारत में मुसलमानों के लिए शर्तें तय कीं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर ओवैसी ने लिखा कि आप चाहें तो ‘Restatement of Values of Judicial Life’ को सुप्रीम कोर्ट की साइट पर भी पढ़ सकते हैं। ओवैसी ने प्वाइंट में बताया कि क्या वैल्यू तय किए गए हैं।

ओवैसी ने 16 प्वांइट में दी गई आचार संहिता के पहले, आठवें और 16वें प्वाइंट को अपनी पोस्ट में स्थान देते हुए लिखा कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए बल्कि न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। उच्च न्यायपालिका के सदस्यों के व्यवहार और आचरण से न्यायपालिका की निष्पक्षता में लोगों के विश्वास की पुष्टि होनी चाहिए। तदनुसार, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के किसी भी कार्य, चाहे वह आधिकारिक या व्यक्तिगत क्षमता में हो, जो इस धारणा की विश्वसनीयता को नष्ट करता है, से बचना होगा।

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ओवैसी ने लिखा कि आठवीं आचार संहिता के अनुसार कोई न्यायाधीश सार्वजनिक बहस में शामिल नहीं होगा या राजनीतिक मामलों पर या उन मामलों पर सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त नहीं करेगा जो लंबित हैं या न्यायिक निर्धारण के लिए उठने की संभावना है।

इसी तरह 16वीं आचार संहिता को अपनी पोस्ट में स्थान देते हुए ओवैसी ने लिखा कि प्रत्येक न्यायाधीश को हर समय इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिए कि वह जनता की नजर के अधीन है और उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य या चूक नहीं होनी चाहिए जो उसके उच्च पद और उस पद के सार्वजनिक सम्मान के लिए अशोभनीय हो।

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ओवैसी ने अपनी एक अन्य पोस्ट में लिखा कि विभिन्न अवसरों पर विहिप पर प्रतिबंध लगाया गया। यह आरएसएस से जुड़ा है, एक ऐसा संगठन जिसे वल्लभाई पटेल ने 'नफरत और हिंसा की ताकत' होने के कारण प्रतिबंधित कर दिया था। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने ऐसे संगठन के सम्मेलन में भाग लिया। इस भाषण का आसानी से खंडन किया जा सकता है, लेकिन उनके सम्मान को याद दिलाना अधिक महत्वपूर्ण है कि भारत का संविधान न्यायिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता की अपेक्षा करता है।

ओवैसी ने कहा कि क्या मैं उनका ध्यान AOR एसोसिएशन बनाम भारत संघ की ओर आकर्षित कर सकता हूं? निर्णय लेने में निष्पक्षता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता और तर्कसंगतता न्यायपालिका की पहचान हैं। भारत का संविधान बहुसंख्यकवादी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक है। लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित हैं। जैसा कि अंबेडकर ने कहा था, ...जैसे एक राजा को शासन करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है, वैसे ही बहुमत को भी शासन करने का कोई दैवीय अधिकार नहीं है। ओवैसी ने कहा कि यह भाषण कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल खड़े करता है और न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है। एक अल्पसंख्यक दल विहिप के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले व्यक्ति से न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है?

जस्टिस शेखर यादव ने क्या कहा

जस्टिस शेखर यादव ने अपने संबोधन में कहा, 'मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि हिन्दुस्तान देश के बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। यह कानून है। मैं यह बात हाईकोर्ट के जज के तौर पर नहीं बोल रहा। आप अपने परिवार या समाज को ही लीजिए कि जो बात ज्यादा लोगों को मंजूर होती है, उसे ही स्वीकार किया जाता है। लेकिन जो कठमुल्ला हैं, जिसे कह लीजिए आप, शब्द गलत है। लेकिन कहने में गुरेज नहीं है, क्योंकि वह देश के लिए घातक हैं। देश के लिए घातक है। जनता को भड़काने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े, इस प्रकार के लोग हैं। उनसे सावधान रहने की जरूरत है।'

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