भतीजे आकाश आनंद पर मायावती के गुस्से की असली वजह क्या? कहां थीं अशोक सिद्धार्थ की निगाहें
बसपा प्रमुख मायावती के निशाने पर आए भतीजे आकाश आनंद और ससुर अशोक सिद्धार्थ को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। मायावती ने इसे लेकर जो भी कहा हो लेकिन असली कारण अभी सामने आना बाकि है। एक कारण आकाश के ससुर अशोक का सपा-कांग्रेस की ओर गठबंधन पर झुकाव को भी कहा जा रहा है।

बीते कुछ वक्त में बसपा प्रमुख मायावती ने भतीजे आकाश आनंद और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ पर खुलकर नाराजगी जाहिर की है। दोनों को पार्टी से निकाल दिया है। सूत्रों के मुताबिक, इस नाराजगी की एक वजह सपा, कांग्रेस और बसपा के गठबंधन की प्रभावी पैरवी भी है। दावा यह भी है कि साल 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों के लिए अशोक सिद्धार्थ इस गठबंधन की रूपरेखा पर काम कर रहे थे।
पिछले लोकसभा चुनावों में एनडी के खिलाफ विपक्ष की साझा एकजुटता की कोशिशें शुरू हुई थीं। 'इंडिया' के बैनर तले ज्यादातर विपक्षी दल एक साथ आए थे। हालांकि, उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब में बात नहीं बन सकी थी। चुनाव परिणाम के बाद यह माना जा रहा था कि अगर इन राज्यों में भी गठबंधन को बेहतर किया जा सकता तो लोकसभा चुनावों के परिणाम कुछ और हो सकते थे। इसी के मद्देनजर बिहार और उत्तर प्रदेश में गठबंधन को नए सिरे से तैयार करने की कोशिशें हो रही हैं। बिहार में पहला प्रयोग किए जाने की तरफ विपक्ष बढ़ेगा और उसके बाद यूपी में भी इस दिशा में काम शुरू होगा।
सूत्र बताते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान अशोक सिद्धार्थ इस तरह की चर्चाओं का हिस्सा रहे थे। सूत्र बताते हैं कि इस तरह की बातचीत के लिए अशोक सिद्धार्थ के मार्फत आकाश तक इस मसले पर बात करने की कवायद हो रही थी। बसपा प्रमुख को न तो सपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में कोई दिलचस्पी है और न ही वह इस तरह की जानकारी के बिना हो रही कोशिशें से ही खुश थीं। कार्रवाई की एक बड़ी वजह इसे भी माना जा रहा है।
कांग्रेस बसपा के साथ भी देख रही संभावनाएं
सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनावों में यूपी कांग्रेस सपा के इतर बसपा के साथ भी गठबंधन की संभावनाएं तलाश रही है। जानकारों की मानें तो इसकी बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस और बसपा दोनों ही इस समय ऐसी स्थिति में हैं कि बातचीत आसानी से हो सकती है। दोनों ही पार्टियों की राजनीतिक स्थितियां अच्छी नहीं हैं। मौजूदा समय में बसपा का केवल एक ही विधायक है जबकि कांग्रेस के दो विधायक हैं। इसके उलट सपा के साथ गठबंधन की बातचीत में सबसे बड़ी बात कांग्रेस की हिस्सेदारी पर आएगी। पिछले विधानसभा चुनावों में सपा ने 111 सीटें जीती थीं। हालांकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सपा के साथ ही गठबंधन बरकरार रखने का हिमायती है।