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8वीं की किताब में अंग्रेजों की पाश्चात्य शिक्षा का गुणगान

Prayagraj News - राजकीय, सहायता प्राप्त एवं परिषदीय स्कूलों में कक्षा 8 में पढ़ाई जा रही हमारा इतिहास और नागरिक जीवन के कुछ अंश पर शिक्षकों ने आपत्ति जताई...

Newswrap हिन्दुस्तान, इलाहाबादThu, 5 Dec 2019 01:57 PM
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राजकीय, सहायता प्राप्त एवं परिषदीय स्कूलों में कक्षा 8 में पढ़ाई जा रही हमारा इतिहास और नागरिक जीवन के कुछ अंश पर शिक्षकों ने आपत्ति जताई है। इस किताब के पाठ-6 ‘ब्रिटिश राज के अधीन भारत में पृष्ठ संख्या 57 पर लिखा है-‘अंग्रेजों द्वारा लागू की गयी पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीयों को संकुचित सोच को तोड़ा और उनमें नयी दुनिया की ललक और जिज्ञासा जागृत की।

इस पर विद्यावती दरबारी बालिका इंटर कॉलेज लूकरगंज की इतिहास शिक्षिका गार्गी श्रीवास्तव का कहना है कि आजादी के 72 वर्षों के बाद भी इतिहास की पुस्तक में अंग्रेजी शासन को महिमा मंडित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है। कक्षा में पढ़ाते समय कैसे बच्चों की जिज्ञासा का समाधान किया जाए कि हम भारतीय यदि अंग्रेजी शासन के सम्पर्क में ना आते तो हमारी सोच संकुचित रह जाती।

नये और आधुनिक युग से भारत वंचित रह जाता। जो अंग्रेजी शिक्षा और संस्कृति को भारत की आजादी के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी मानते हैं संभवत: उन्होंने आदिवासी समाज के संघर्ष और बिरसा मुंडा को नहीं पढ़ा। इस प्रकार से इतिहास की व्याख्या वही कर सकता है जिसने प्राचीन भारत के इतिहास और संस्कृति का पर्याप्त अध्ययन नहीं किया।

यह वामपंथी विचारधारा की पोषक मानसिकता का परिचायक है। कैसे हमारे बच्चे भावी पीढ़ी अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करें, जब वह ऐसा इतिहास पढ़ और समझ रहे हैं। यह पुस्तक राज्य शिक्षा संस्थान एलनगंज की ओर से तैयार की गई है जो राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के अधीन है।

इनका कहना है

किताब की इस लाइन से लॉर्ड मैकाले की सोच प्रतिबिंबित हो रही है। हमारे मनीषियों ने हमेशा दूसरे के अच्छे ख्यालों का स्वागत किया। ऐसा कोई संकुचित सोच वाला व्यक्ति नहीं कर सकता। ऐसी विषयवस्तु को तत्काल किताब से हटा देना चाहिए।

प्रो. योगेश्वर तिवारी, अध्यक्ष मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय

किताब के किसी अंश पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि इसे विशेषज्ञों की टीम ने तैयार किया है। इसकी भाषा और परिमार्जित किए जाने की आवश्यकता है।

डॉ. आशुतोष दुबे, प्राचार्य राज्य शिक्षा संस्थान

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