जेल से निकलकर की कानून की पढ़ाई फिर खुद लड़ा केस; अब बागपत के इस युवक पर बनेगी फिल्म
बागपत के किरठल के रहने वाले अमित चौधरी के संघर्ष पर अब फिल्म बनेगी। दरअसल शामली के मस्तगढ़ पुलिया पर बदमाश सुमित कैल द्वारा पुलिसकर्मियों पर किए जानलेवा हमले और राइफल लूट मामले में फंस गए थे। जिसके बाद जमानत मिलन पर उन्होंने अपना केस खुद लड़ा था।
12 अक्टूबर 2011 को शामली के थानाभवन की मस्तगढ़ पुलिया पर बदमाश सुमित कैल द्वारा पुलिसकर्मियों पर किए जानलेवा हमले और राइफल लूट मामले में फंसे बागपत के किरठल निवासी अमित चौधरी के संघर्ष पर अब फिल्म बनेगी। इस घटना में एक कांस्टेबल की मौत हो गई थी और एक घायल हो गया था। अमित चौधरी इसी दौरान मस्तगढ़ गांव में अपनी बहन के घर गए थे। घटना के बाद बदमाश फरार हो गए।
पुलिस ने 17 लोगों पर हत्या और सरकारी असलाह लूटने का मुकदमा दर्ज किया था। अमित चौधरी भी इनमें से एक थे। उस वक्त अमित की उम्र महज 18 साल छह महीने थी। आरोपों के चलते अमित चौधरी को 862 दिन जेल में रहना पड़ा था।
लॉ किया, खुद लड़ा केस, बाइज्जत बरी हुए
जमानत मिलने पर अमित चौधरी ने लड़ने का फैसला किया। उन्होंने सीसीएसयू से एलएलबी और फिर एलएलएम किया। कोर्ट में केस की खुद लड़ाई लड़ी। सितंबर 2023 में अमित चौधरी को कोर्ट ने उक्त मामले में निर्दोष मानते हुए बाइज्जत बरी कर दिया।
राजीव बरनवाल ने 30 लाख रुपये में खरीदी यह कहानी
अमित चौधरी के इस संघर्ष की कहानी को निर्माता-निर्देशक राजीव बरनवाल ने खरीद लिया है। वध, जहानाबाद ऑफ लव एंड वार, सतरंगी पैराशूट, मंगल पांडेय: द राइजिंग, ग्वालियर, बेशर्म, सावधान इंडिया सहित विभिन्न चर्चित फिल्म एवं सीरियल लेखक-निर्माता राजीव बरनवाल अमित चौधरी के संघर्ष पर फिल्म बनाएंगे। 30 लाख रुपये में यह कहानी खरीदी गई है। पांच लाख रुपये साइनिंग अमाउंट मिल चुका है। साल के अंत तक फिल्म रिलीज होने की उम्मीद है। फिल्म में एक नौजवान के सपनों का पुलिस के गलत केस से बिखरने, उसके संघर्ष और इस पर विजय होने की कहानी होगी।
आर्मी का सपना, जेल, संघर्ष और इंसाफ...
सेना मे जाने का सपना देखने वाले अमित चौधरी को उक्त घटना में नामजद करने से जेल में जाना पड़ा। अमित के अनुसार उसे कठोर पुलिस यातनाओें से गुजरना पड़ा। जेल में कई चर्चित अपराधियों ने उसे अपने गैंग में शामिल करने का प्रयास किया। घरवालों ने किनारा कर लिया। अमित के कई साल ऐसे बीते जब एक वक्त खाना नहीं मिला। किराए के लिए पैसे नहीं रहे। लेकिन संघर्ष के दम पर अमित चौधरी इस घटना के कलंक को अपने माथे से धोने में सफल रहे।