Rajasthan by Election: क्यों वसुंधरा राजे विधानसभा उप चुनाव से है दूर ?
- हालांकि, बीजेपी के प्रदेश प्रभारी राधामोहन दास अग्रवाल का कहना है कि वसुंधरा राजे की राजस्थान की राजनीति में भूमिका हमेशा बनी रहेगी। वसुंधरा राजे सिंधिया दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं।
राजस्थान विधानसभा उपचुनाव की 7 सीटों के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। दोनों ही दल जीत के अपने-अपने दावे कर रहे है। इस चुनाव की खास बात यह है कि दोनों ही दलों के वरिष्ठ नेता दूरी बनाए हुए है। कांग्रेस में अशोक गहलोत औऱ सचिन पायलट को उप चुनाव से दूर रखा गया है। जबकि बीजेपी में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे निष्क्रिय है। चुनाव प्रचार से दूर है। राजनीतिक विश्लेषक राजे के कम सक्रिय होने को नाराजगी से जोड़कर देख रहे है। हालांकि, वसुंधरा राजे ने खुलकर कभी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं है।
हालांकि, बीजेपी के प्रदेश प्रभारी राधामोहन दास अग्रवाल का कहना है कि वसुंधरा राजे की राजस्थान की राजनीति में भूमिका हमेशा बनी रहेगी। वसुंधरा राजे सिंधिया दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं। उन्होंने राजस्थान की राजनीति में बहुत क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। इन चुनावों में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। समीकरण के हिसाब से एकमात्र सीट सलूंबर है जिस पर बीजेपी का कब्जा था। अन्य 6 सीटों पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का कब्जा था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है। भले ही उनके कब्जे वाली एक सीट पर चुनाव हो रहे है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर फिर से उप चुनाव होने जा रहे हैं। राज्य की झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी, सलूम्बर और रामगढ़ विधानसभा सीट पर 13 नवंबर को चुनाव होंगे। 23 नवंबर को इन सीटों के नतीजे आएंगे। इन सीटों पर विधानसभा चुनाव के एक साल के अंतराल में ही उप चुनाव होने जा रहे है। कांग्रेस, भाजपा, आरएलपी, बीएपी सहित अन्य दल उपचुनावों में जीत के लिए रणनीति बनाने में जुटे हुए है। चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आए तो भजनलाल सरकार के कामकाज पर मुहर लगेगी। यदि कांग्रेस के पक्ष में आए तो पार्टी नेता इसे सत्ता विरोधी लहर बताएंगे। ऐसे में यह उपचुनाव भाजपा-कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय दलों के लिए भी परीक्षा की घड़ी है।