आचार्य महामंडेश्वर लक्ष्णी नारायण त्रिपाठी और अन्य संतों ने पहले शंख में दूध और फिर गंगाजल से ममता का अभिषेक किया। इस दौरान स्वागत में शंख की मधुर ध्वनि सुनाई देती रही और जूना अखाड़े के पागल बाबा शिव भजन प्रस्तुत कर रहे थे।
ममता कुलकर्णी की सबसे पहले गुरुवार की शाम और शुक्रवार की सुबह दो बार आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मुलाकात हुईं। ममता ने सेवा और पद की इच्छा जताई तो उनकी परीक्षा हुई। साधना से जुड़े कई सवालों के जवाब देने पड़े। इसके बाद महामंडलेश्वर बनाने का फैसला हुआ।
महामंडलेश्वर बनने से पहले ममता कुलकर्णी ने संगम में तीन डुबकी लगाई और अपना ही पिंडदान किया। इस दौरान किन्नर अखाड़े की संतों ने अन्य परंपराओं का भी निर्वहन कराया।
गेरूआ रंग का वस्त्र धारण किए ममता वीआईपी कक्ष में पहुंचीं तो जूना अखाड़ा के स्वामी महेन्द्रानंद गिरि और स्वामी जय अम्बानंद गिरी ने उनके माथे पर तिलक लगाया। ममता किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ मंच की ओर गईं। पहले जमीन पर चादर बिछाई गई। इस पर हल्दी, चंदन और रोली लगाकर उस पर ममता को बैठाया गया। ममता के साथ अन्य कई संत भी महामंडलेश्वर बने।
मस्ताभिषेक के बाद ममता कुलकर्णी को आचार्य समेत अन्य संतों ने गोरुआ चादर ओढ़ाकर पट्टाभिषेक किया।
इसके बाद उन्हें माला पहनाई गई और उनके थोड़े से बाल काटकर चोटी काटने की रस्म पूरी की गई। घोषणा हुई कि ममता कुलकर्णी अब से किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर यामाई ममता नंद गिरी हो गई हैं।
महामंडलेश्वर बनने के बाद ममता कुलकर्णी ने मीडिया से भी बात की। उनके सवालों का जवाब देने के साथ ही यह भी बताया कि कब औऱ कैसे उन्होंने महामंडलेश्वर बनने का फैसला लिया।