Hindi Newsगैलरीदेशक्या है पूर्ण कुंभ और महाकुंभ, क्यों सिर्फ 4 शहरों में होता है; महामंडलेश्वर ने बताया

क्या है पूर्ण कुंभ और महाकुंभ, क्यों सिर्फ 4 शहरों में होता है; महामंडलेश्वर ने बताया

  • महाकुंभ के मकर संक्रांति अमृत स्नान पर सूर्य की पहली किरण के साथ जारी क्रम जारी है। डुबकी लगाने वालों का आंकड़ा डेढ़ करोड़ के करीब पहुंच गया है। हाड़ कंपाने वाली इस ठंड में सिर्फ भारतीय ही नहीं, बल्कि विदेशों से आए कई श्रद्धालु ने भी अमृत स्नान किया। अब इसका महत्व समझते हैं।

Nisarg DixitWed, 15 Jan 2025 06:29 AM
1/9

क्या होता है कुंभ

महाकुंभ मेला (पवित्र घड़े का त्यौहार) हिंदू पौराणिक कथाओं में शामिल है। यह दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। इस समागम में मुख्य रूप से तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं। हिंदू धर्म में कुंभ मेला एक धार्मिक तीर्थयात्रा है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाई जाती है।

2/9

कुंभ का महत्व

कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस, जिसे 'पेशवाई' कहा जाता है, 'शाही स्नान' के दौरान चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में, तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेले में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।

3/9

क्यों खास है नागा साधुओं की मौजूदगी

कुंभ मेले में सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें साधु और नागा साधु शामिल हैं, जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का पावनकरते हैं। खास बात है कि ये संन्यासी जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं।

4/9

क्यों सिर्फ चार शहर

राजस्थान के जिला पाली से श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के महामंडलेश्वर स्वामी चेतन गिरी ने बताया कि जब देव और दानव में अमृत को लेकर द्वंद हुआ और उसके बाद जहां जहां अमृत की बूंदे गिरी वहीं कुंभ का आयोजन होता है।

5/9

ये हैं चार शहर

कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है। हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज। अर्ध कुंभ केवल हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है। उन्होंने कहा कि तीर्थों के राजा प्रयागराज में जब 12 साल का पूर्ण कुंभ 12 बार पूरा होता है तब 144 साल बाद फिर प्रयागराज में महाकुंभ लगता है।

6/9

जब तट के लिए निकले संत

14 जनवरी की भोर से ही सभी 13 अखाड़े अपने जुलूस के साथ संगम तट पर जाने के लिए तैयार दिखे। हाथी, घोड़े, ऊँट पर सवार साधु-संत हाथों में त्रिशूल, गदा, भाला-बरछी लेकर 'जय श्री राम', 'हर हर महादेव' के जयघोष के साथ जब संगम तट के लिए निकले तो कई किलोमीटर लंबी लाइन लग गई।

7/9

क्यों खास है आज का स्नान

मकर संक्रांति पर सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा ने अमृत स्नान किया। पहला अमृत स्नान कई मायनों में खास है। यह सोमवार को पौष पूर्णिमा के अवसर पर संगम क्षेत्र में पहले बड़े ‘स्नान’ के एक दिन बाद हुआ।

8/9

पहुंचे विदेशी श्रद्धालु

दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, केरल, आंध्र प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों से आए अलग अलग समुदायों के लोगों के साथ साथ अमेरिकी, इजराइली, फ्रांसीसी समेत कई अन्य देशों के नागरिक भी गंगा स्नान करते हुए भारत की सनातन संस्कृति से अभिभूत हो गए। महाकुंभनगर इन श्रद्धालुओं के ‘जय श्री राम’, ‘हर हर गंगे’, ‘बम बम भोले’ के उद्घोष से गूंज उठा।

9/9

नागा साधुओं को देखने उमड़ी भीड़

पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी तट पर साधुओं की पारंपरिक और अद्वितीय गतिविधियों ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। अमृत स्नान के लिए ज्यादातर अखाड़ों का नेतृत्व कर रहे इन नागा साधुओं का अनुशासन और उनका पारंपरिक शस्त्र कौशल देखने लायक था।