KMP एक्सप्रेसवे के लिए जमीन अधिग्रहण मामला: SC ने मुआवजे पर भूमि मालिकों के हक में सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे (KMP Expressway) के लिए हरियाणा में अधिग्रहित की गई जमीन के कुछ मालिकों को दी जाने वाली मुआवजा राशि बढ़ाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे (KMP Expressway) के लिए हरियाणा में अधिग्रहित की गई जमीन के कुछ मालिकों को दी जाने वाली मुआवजा राशि बढ़ाई गई थी। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के नवंबर 2021 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें झज्जर के जिला राजस्व अधिकारी-सह-भूमि अधिग्रहण कलेक्टर (एलएसी) के मुआवजा राशि बढ़ाने के आदेश को रद्द कर दिया गया था।
एलएसी ने 15 सितंबर 2020 को पारित एक आदेश में मुआवज राशि बढ़ाकर 19,91,300 रुपये प्रति एकड़ कर दी थी, साथ ही एक जैसी भूमि वाले मालिकों को हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए वैधानिक लाभ भी दिए। हालांकि, कुछ जमीन मालिकों ने हाईकोर्ट के नवंबर 2021 के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी जिस पर ही सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
बेंच ने इस बात पर गौर किया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत नवंबर 2004 को अधिसूचना जारी कर झज्जर जिले में अपीलकर्ताओं की भूमि एक्सप्रेसवे के लिए अधिग्रहित की गई थी और मार्च 2006 में मुआवजा आदेश जारी कर 12.50 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा निर्धारित किया गया था।
कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि मुआवजा आदेश से असंतुष्ट एक जैसी भूमि वाले कुछ मालिकों ने झज्जर के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के समक्ष मुआवजा बढ़ाने के लिए एक संदर्भ दिया, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया।
बेंच ने इस पर भी गौर किया कि ऐसे भूमि मालिकों ने हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने मई 2016 में वैधानिक लाभों के साथ मुआवजे को बढ़ाकर 19,91,300 रुपये प्रति एकड़ कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 30 जून 2016 को याचिकाकर्ताओं ने झज्जर के एलएसी के समक्ष अधिनियम की धारा 28-ए के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसने व्यवस्था दी कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के मई 2016 के फैसले का लाभ पाने के हकदार थे और मुआवजा राशि बढ़ा दी।
अधिनियम की धारा 28-ए, कोर्ट के आदेश के आधार पर मुआवजे की राशि के पुनर्निर्धारण से संबंधित है। यह मामला फिर से हाईकोर्ट के समक्ष आया, जिसने एलएसी के आदेश को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि यह माना गया था कि धारा 28-ए के उद्देश्यों और कारणों के विवरण से पता चलता है कि प्रावधान के अधिनियमन के पीछे अंतर्निहित मकसद समान या समान गुणवत्ता वाली भूमि के लिए मुआवजे के भुगतान में असमानता को दूर करना था।
बेंच ने कहा, ‘‘इसलिए 25 नवंबर 2021 के हाईकोर्ट के फैसले और आदेश को रद्द कर दिया जाता है और 15 सितंबर 2020 के एलएसी के आदेश को बरकरार रखा जाता है।’’