दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन से मना किए गए लोगों की लिस्ट मांगी
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को मान्यता देने के लिए एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से समलैंगिक विवाह के पंजीकरण से...
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को मान्यता देने के लिए एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से समलैंगिक विवाह के पंजीकरण से इनकार किए जाने वाले व्यक्तियों की लिस्ट मांगी है।
चीफ जस्टिस डी.एन. पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह के गैर-पंजीकरण से पीड़ित व्यक्तियों की लिस्ट प्रस्तुत करने के लिए समय दिया और याचिका में संशोधन करने के लिए इस मामले को 21 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका पर सवाल उठाया और कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकती। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को कम या ज्यादा नहीं किया है।
अपनी व्यक्तिगत कानूनी राय व्यक्त करते हुए तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे विवाह वैधानिक प्रावधान के विपरीत हैं, हमारा समाज, हमारे मूल्य एक ही लिंग के दो लोगों के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील की दलील थी कि उक्त लिंग विवरण इस अधिनियम में नहीं है।
याचिकाकर्ताओं राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इस तथ्य के बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को डिक्रिमिनलाइज्ड किया है, हिंदू मैरिज एक्ट के प्रावधानों के तहत अब भी समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जा रही है।
याचिका ने अदालत से इस आशय की एक घोषणा करने का आग्रह किया कि चूंकि 1956 के हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विषमलैंगिक जोड़ों के बीच अंतर नहीं है, इसलिए समान लिंग वाले जोड़ों को विवाह करने के अधिकार को उक्त अधिनियम के तहत मान्यता दी जानी चाहिए।
इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं ने संविधान के तहत दिए गए अपने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और कहा है कि LGBT समुदाय को शादी करने का विकल्प देना पूरी तरह भेदभावपूर्ण है और लोग उन्हें द्वितीय श्रेणी के नागरिक मानते हैं।
दलील में कहा गया है कि अब तक कानून एलजीबीटी समुदाय के लोगों को केवल व्यक्तियों के रूप में देखता है, न कि जोड़ों के रूप में यह और दावा किया गया है कि एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने की अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर हैं। याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विषमलैंगिक विवाहित जोड़ों की तरह सभी लाभ मिलने चाहिए।