आसाराम पर आधारित किताब पर लगी रोक हटी, दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश किया रद्द
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को बलात्कार के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वयंभू संत आसाराम बापू को दोषी ठहराए जाने के पीछे "सच्ची कहानी" होने का दावा करने वाली एक किताब के प्रकाशन...
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को बलात्कार के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वयंभू संत आसाराम बापू को दोषी ठहराए जाने के पीछे "सच्ची कहानी" होने का दावा करने वाली एक किताब के प्रकाशन पर रोक लगाते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
जस्टिस नजमी वजीरी की सिंगल जज बेंच ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स को किताब के आगे या पीछे के कवर पर एक डिस्क्लेमर लगाने का निर्देश दिया कि सजा के खिलाफ अपील लंबित है।
हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स द्वारा दायर याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए "गनिंग फॉर गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू के कन्विक्शन" नामक किताब के प्रकाशन पर से रोक हटाने की मांग की गई थी।
Delhi High Court sets aside the trial court's order restraining publication of a book titled 'Gunning for the Godman: The True Story Behind Asaram Bapu's Conviction'. Court directs publisher HarperCollins to carry a disclaimer that the appeal against conviction is pending.
— ANI (@ANI) September 22, 2020
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने 4 सितंबर को सुनवाई की अगली तारीख तक प्रकाशक को "गनिंग फॉर गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू के कन्विक्शन" नामक किताब को प्रकाशित करने से रोकने का निर्देश दिया था।
निचली अदालत ने आसाराम से जुड़े एक मामले में सह-अभियुक्त संचिता गुप्ता द्वारा दायर एक याचिका पर स्टे जारी किया था, जिसने अदालत में किताब के प्रकाशन के खिलाफ तत्काल राहत की मांग करते हुए दावा किया था कि वेब पोर्टल पर पूर्व में प्रकाशित किया गया अध्याय उसकी मानहानि कर रहा था और इस संबंध में राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष लंबित उसकी अपील पर सुनवाई संभावना थी।
संचिता गुप्ता ने अपने वकील नमन जोशी और करण खानूजा द्वारा दायर एक दीवानी मुकदमे में अदालत का दरवाजा खटखटाया था और इस मामले का वकील विजय अग्रवाल ने जोरदार विरोध किया था।
जयपुर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अजय लांबा और संजीव माथुर द्वारा लिखित इस किताब के एक सच्ची कहानी होने का दावा किया गया है।