4 फीसदी आबादी वालों को 80% संसाधन चाहिए, गुरुग्राम में बोले मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुग्राम में कहा कि आज समय विकसित भारत की मांग कर रहा है। दुनिया में चार फीसदी जनसंख्या वालों को 80 संसाधन चाहिए। विकास हुआ तो पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुग्राम में शुक्रवार को विजन फॉर विकसित भारत (विविभा : 2024) सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने देश-दुनिया के कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा कि आज समय विकसित भारत की मांग कर रहा है। दुनिया में चार फीसदी जनसंख्या वालों को 80 संसाधन चाहिए। विकास हुआ तो पर्यावरण की समस्या उत्पन्न हो गई।
भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा एसजीटी विश्वविद्यालय में 15 से 17 नवंबर तक तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। पहले दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के अलावा इसरो अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी अपनी बातें रखीं। इसमें 1200 शोधार्थी भी शामिल हो रहे हैं। मोहन भागवत ने कहा कि आज पूरी दुनिया में चर्चा है कि विकास चुनें या पर्यावरण।
16वीं शताब्दी तक हर क्षेत्र में अग्रणी था भारत : 16वीं शताब्दी तक भारत हर क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी था। मगर, हम रुक गए और पिछड़ गए। हालांकि, उससे पहले हमने अपने आप को साबित किया है। विकास को समग्रता में देखा जाना चाहिए। विकास केवल अर्थ काम की प्राप्ति नहीं है। उसका विरोध नहीं है, लेकिन आत्मिक और भौतिक समृद्धि दोनों विकास एक साथ चलने चाहिए। हम नकल नहीं करेंगे किसी की, हमको खुद के ही प्रतिमान खड़े करने होंगे। अगर आज से ही हम इसमें लग गए तो आगामी 20 वर्षों में विजन-2047 का सपना साकार होते हुए मैं देख रहा हूं।
अपना स्पेस स्टेशन तैयार करना लक्ष्य : सोमनाथ
इसरो अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने का यही सही समय है। उन्होंने मिशन चंद्रयान की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजना और अपना स्पेस स्टेशन तैयार करना है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसा भारत बनाना है ताकि लोग यहां पर प्रसन्नता पूर्वक रहें।
हाथ फैलाने की जरूरत नहीं : कैलाश सत्यार्थी
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि लगभग दो लाख प्रतिभागियों में से चुने हुए 1200 शोधार्थी एक साथ एक छत के नीचे बैठे हैं। भारतीय परंपरा की जड़ें बहुत गहरी हैं। हम समेवेशी विकास के साथ आगे बढ़ते हैं। विकास की परिभाषा और अवमानना हमारी अपनी है। भारत को किसी की नकल करने और हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है।