अपडेट:::::::निष्पक्ष रहने के लिए जजों का नास्तिक होना जरूरी नहीं : जस्टिस चंद्रचूड़
नोट- हिन्दुस्तान टाइम्स का लोगो लगाएं। ------------------------------- - कहा, नियुक्तियों
नोट- हिन्दुस्तान टाइम्स का लोगो लगाएं। -------------------------------
- कहा, नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक शक्तियों के उपयोग में संयम जरूरी
उत्कर्ष आनंद
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को न्यायपालिका के भीतर नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायिक शक्तियों के उपयोग में संयम के महत्व पर जोर दिया। साथ ही इस धारणा को भी खारिज किया कि जजों को निष्पक्ष बने रहने के लिए नास्तिक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की सच्ची स्वतंत्रता जजों को निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने की अनुमति देती है, भले ही परिणाम सरकार के पक्ष में हो या उसे चुनौती दे।
मुख्य न्यायाधीश ने हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में अपने कार्यकाल पर खुलकर बात की। इसमें उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता, नियुक्तियों में न्यायिक शक्ति के संयमित उपयोग और ट्रायल कोर्ट स्तर पर जमानत के मजबूत समर्थन पर केंद्रित भारत की न्यायपालिका पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों को सुविधाजनक बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को अपनी न्यायिक शक्तियों का उपयोग करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप का सहारा लेने के बजाय सरकार के साथ खुली बातचीत की आवश्यकता पर बल दिया। जस्टिस चंद्रचूड़ रविवार को अपने पद से रिटायर हो रहे हैं।
व्यक्तिगत मान्यताएं, निष्पक्षता से समझौता
न्यायिक स्वतंत्रता पर उन्होंने इस धारणा को चुनौती दी कि जज की व्यक्तिगत मान्यताएं उनकी निष्पक्षता से समझौता करती हैं, जबकि उन्होंने अदालतों से आग्रह किया है कि वे दोषसिद्धि से पहले अनुचित हिरासत से बचने के लिए जमानत देने में ट्रायल कोर्ट का समर्थन करें।
कोलेजियम की भूमिका का बचाव किया
न्यायिक नियुक्तियों पर चर्चा करते हुए, जस्टिस चंद्रचूड़ ने वर्तमान कोलेजियम प्रणाली की सीमाओं को स्वीकार किया और उम्मीदवारों की जांच में कोलेजियम की भूमिका का बचाव किया। उन्होंने कहा कि कोई भी प्रणाली परिपूर्ण नहीं है, यह देखते हुए कि कोलेजियम और सरकार दोनों इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने प्रक्रिया का समय पर पालन करने की वकालत की, जो सरकार द्वारा दोहराई गई सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार करना अनिवार्य बनाता है। फिर भी, उन्होंने नियुक्तियों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनी न्यायिक शक्ति का लाभ उठाने के खिलाफ चेतावनी दी। कहा कि यदि हम किसी विशेष नियुक्ति को सुनिश्चित करने के लिए अपनी न्यायिक शक्तियों का उपयोग करते हैं, तो आलोचना होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि हम अपनी न्यायिक शक्तियों का उपयोग अनिवार्य रूप से अपनी सिफारिश को सुविधाजनक बनाने के लिए कर रहे हैं।
आलोचनाओं को जवाब दिया
मंदिरों में जाने पर हुई सार्वजनिक आलोचना का जवाब देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायिक निर्णयों का मूल्यांकन व्यक्तिगत विश्वासों के बारे में धारणाओं के बजाय कानूनी तर्क के आधार पर किया जाना चाहिए। मालूम हो कि कुछ आलोचकों ने अयोध्या के फैसले और ज्ञानवापी मामले में एक जज के रूप में उनकी भूमिका की आलोचना की गई थी।
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