शारीरिक संबंध के केस में नाबालिग की सहमति मायने नहीं रखती; पॉक्सो मामले में बोला दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पॉक्सो केस के एक मामले में कहा है कि सहमति से यौन संबंध बनाने के दावे से जुड़ी याचिका कानूनन अप्रासंगिक है क्योंकि पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो केस के एक मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी की जमानत याचिका खारिज हुए कहा है कि सहमति से शारीरिक संबंध के केस में नाबालिग की सहमति मायने नहीं रखती। पीड़िता की उम्र निर्णय लेने लायक नहीं होती। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न के आरोप में मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति द्वारा सहमति से यौन संबंध बनाने की दलील कानूनन अप्रासंगिक है, क्योंकि पॉक्सो एक्ट के तहत पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है।
अदालत ने कहा, ‘‘सहमति से यौन संबंध बनाने की यह दलील कानूनन अप्रासंगिक है। पॉक्सो एक्ट के तहत पीड़िता की उम्र निर्णायक कारक है और अगर पीड़िता की उम्र 18 साल से कम है, तो कानून का यह मानना है कि वह वैध सहमति नहीं दे सकती।’’
जस्टिस नरूला ने 3 फरवरी के आदेश में कहा, ‘‘इसलिए, यौन संबंध की कथित सहमति की प्रकृति, पॉक्सो अधिनियम के तहत मुकदमे में प्रथम दृष्टया अप्रासंगिक है।’’
हाईकोर्ट ने 26 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर 2024 में अपनी 16 वर्षीय पड़ोसन का यौन उत्पीड़न करने और गर्भपात के लिए दवाइयां देने का भी आरोप है। आरोपी व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और उसकी एक बेटी भी है। उसने कहा कि पीड़िता 18 साल की थी और उनके बीच सहमति से संबंध बने थे।
हाईकोर्ट ने कहा कि बयान के प्रभाव की पड़ताल मुकदमे के दौरान की जाएगी, जब पक्षकार साक्ष्य प्रस्तुत कर देंगे। कोर्ट ने कहा कि इस समय अदालत स्कूल रिकॉर्ड की अनदेखी नहीं कर सकती, जिसमें पीड़िता की जन्म तिथि 3 अगस्त 2008 स्पष्ट रूप से दर्ज है।
हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध की प्रकृति, पीड़िता और आरोपी के बीच उम्र का अंतर और यह तथ्य कि मुकदमा अभी चल रहा है तथा प्रमुख सरकारी गवाहों से जिरह अभी होनी है, ऐसे कारक हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता, गवाह को प्रभावित करने की संभावना और मुकदमे की कार्यवाही के चरण को देखते हुए, अदालत याचिकाकर्ता को जमानत देने की इच्छुक नहीं है।