10% वोट को लेकर क्यों है केजरीवाल को टेंशन, 5 साल पहले ही मिला था एक संकेत
दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार का दौर खत्म हो चुका है। लगातार चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जहां आम आदमी पार्टी ने पूरा दमखम लगा दिया है तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने भी उससे सत्ता छीनने को कोई कसर बाकी नहीं रखी।
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दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार का दौर खत्म हो चुका है। लगातार चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाने के लिए जहां आम आदमी पार्टी ने पूरा दमखम लगा दिया है तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने भी उससे सत्ता छीनने को कोई कसर बाकी नहीं रखी। राजनीतिक विश्लेषक इस चुनाव को अरविंद केरीवाल और उनकी पार्टी के लिए सबसे मुश्किल बता रहे हैं। खुद केजरीवाल भी बार-बार जनता को यह कहते हुए चेता रहे हैं कि यदि भाजपा आ गई तो मुफ्त की सुविधाएं बंद कर देगी, इसलिए गलत बटन ना दबाएं। एक दिन पहले उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका जाहिर करते हुए समर्थकों से सभी सीटों पर 10 पर्सेंट से अधिक मार्जिन लेने की अपील की।
अरविंद केजरीवाल ने सूत्रों के हवाले से दावा किया कि मशीनों में 10 पर्सेंट वोटों की गड़बड़ी की जा सकती है। उन्होंने यह आशंका जाहिर करते हुए समर्थकों से कहा कि 15 पर्सेंट का मार्जिन हासिल करें, ताकि 10 पर्सेंट की गड़बड़ी होने पर भी 5 पर्सेंट के अंतर से जीत जाएं। केजरीवाल के इस दावे में कितनी सच्चाई है यह तो वह खुद बता सकते हैं, लेकिन चुनाव आयोग बार-बार ईवीएम में किसी भी तरह की छेड़छाड़ और गड़बड़ी की आशंकाओं को सिरे से खारिज करता रहा है। राजनीतिक विश्लेषक केजरीवाल के इस दावे के पीछे एक अलग रणनीति भी देख रहे हैं।
5 साल पहले दिखे रुझान से चिंता?
दरअसल, 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था। 70 में से पहले 67 और फिर 62 सीटों पर कब्जा जमाया था। भाजपा इन दोनों चुनावों में क्रमश: 3 और 8 सीटों पर ही कमल खिला सकी थी। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले चुनाव में 32 सीटों पर आम आदमी पार्टी के वोट शेयर में गिरावट आई थी तो 42 सीटों पर जीत का अंतर घट गया था। इसमें से लगभग सभी पर भाजपा का वोट शेयर बढ़ गया था। 14 सीटों पर आम आदमी पार्टी का वोटर शेयर 5 पर्सेंट से अधिक घट गया था। 2015 के मुकाबले 2020 में 62 सीटों पर भाजपा के वोट शेयर में इजाफा देखा गया था। इनमें से 18 सीटों पर 10 फीसदी से अधिक का उछाल था।
एंटी इनकंबेंसी के बावजूद समर्थकों को टूटने से बचाना है चुनौती
आम आदमी पार्टी लगातार 10 सालों से सत्ता में हैं और ऐसे में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से इनकार नहीं किया जा सकता है। खुद पार्टी ने इसे भांपते हुए डेढ़ दर्जन से अधिक सीटों पर उम्मीदवार बदल दिए। अरविंद केजरीवाल स्वीकार कर चुके हैं कि पानी, सड़क और यमुना की सफाई के मोर्चे पर वह काम नहीं कर सके। उन्होंने इन तीनों कामों के लिए अब एक और मौके की मांग की है। अरविंद केजरीवाल की असली चुनौती ऐसे माहौल में भी उन वोटर्स को अपने साथ बनाए रखना है जो पिछले चुनाव में झाड़ू का बटन दबा चुके हैं। इसके लिए वह बार-बार गिनाते रहे हैं कि उनकी सरकार ने क्या-क्या फायदे दिए हैं। वह वोटर्स को बताते हैं कि उनकी सरकार हर परिवार के लिए औसतन 25 हजार रुपए का बचत कर रही है और यदि भाजपा की सरकार आ गई तो उन्हें इतने की चपत लगेगी।