आर्टिकल 370 पर क्या बोल गए चंद्रचूड़, जिस पर घिरे; हरीश साल्वे दिखाने लगे आईना
- हरीश साल्वे ने कहा, 'आपको एक पत्रकार मिल गया। आपको समझना चाहिए कि आप एक मुश्किल में फंस सकते हैं। एक बात यह कि चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा होता है।'मुझे लगता है कि उन्होंने कोर्ट के मामले में बात नहीं करनी चाहिए। इसलिए नहीं कि वह चीफ जस्टिस थे बल्कि वह सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा थे।'
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पिछले सप्ताह बीबीसी को इंटरव्यू दिया था। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कामकाज से लेकर कई फैसलों तक बात की थी। अब इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने उन पर निशाना साधा है। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस तक में भारत का पक्ष रख चुके हरीश साल्वे ने कहा कि चीफ जस्टिस ने एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ही ट्रायल पर रख दिया। उन्होंने कहा जस्टिस चंद्रचूड़ ने विदेशी मीडिया से बात की। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को ही ट्रायल पर रख दिया। यह ठीक नहीं था और इससे बचा जा सकता था। हरीश साल्वे ने कहा, 'आपको बीबीसी का एक पत्रकार मिल गया। आपको समझना चाहिए कि आप एक मुश्किल में फंस सकते हैं। एक और बात यह कि चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा होता है।'
उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि उन्होंने कोर्ट के मामले में बात नहीं करनी चाहिए। इसलिए नहीं कि वह चीफ जस्टिस थे बल्कि वह सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा थे। सुप्रीम कोर्ट एक संस्था है। उन्होंने इस इंटरव्यू में एक तरह से सुप्रीम कोर्ट को ही ट्रायल पर रख दिया। हम लोग तो हमेशा से यह कहते रहे हैं कि जज अपने फैसलों के जरिए बात करते रहे हैं।' उन्होंने रिपब्लिक टीवी से बातचीत में कहा कि यह चिंताजनक है कि न्यायपालिका से जुड़े लोग न्यायिक मामलों के बारे में कोर्टरूम से बाहर बात कर रहे हैं। किसी भी फैसले के बारे में बाहर बात नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना जजों की मर्यादा के खिलाफ है। साल्वे ने कहा कि न्यायिक मामलों पर बात कोर्ट रूम में होनी चाहिए। अदालत के फैसलों पर मीडिया इंटरव्यू में चर्चा होना गलत है।
साल्वे ने कहा, 'हम लोग हमेशा से कहते रहे हैं कि जज अपने फैसलों के माध्यम से बात करते हैं।' दरअसल आर्टिकल 370 पर अदालत के फैसले पर बीबीसी के पत्रकार स्टीफन सकर ने सवाल किया था। इस पर फैसले के आधार को लेकर विस्तार से चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने बात की थी। इसी पर साल्वे ने कहा कि अदालत के बाहर फैसले को लेकर जजों को सफाई देने की जरूरत नहीं होती। ऐसा नहीं होना चाहिए था। साल्वे ने कहा, ‘जजमेंट ही बता रहा है कि आर्टिकल 370 को हटाने के फैसले को क्यों अदालत ने बरकरार रखा था। लेकिन जब ऐसे मामलों पर अदालत के बाहर बात होती है तो यह सही नहीं होता। फैसले पर इस तरह कोर्ट रूम के बाहर सवाल नहीं उठाया जा सकता।’
दरअसल बीबीसी के पत्रकार ने चीफ जस्टिस से पूछा था, 'आर्टिकल 370 भारतीय संविधान का हिस्सा था। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा और स्वायत्तता देने की गारंटी थी। आधुनिक भारत की शुरुआत से ही इसे लागू किया गया था। आपने इस पर सहमति जताई कि आर्टिकल 370 हटाने का अधिकार सरकार के पास था। लेकिन कई कानूनी विद्वानों ने इस पर असहमति जताई थी। उनका कहना है कि आप संविधान की रक्षा में असफल रहे। आखिर आपने ऐसा फैसला क्यों दिया?' इस पर पूर्व चीफ जस्टिस ने जवाब दिया था, 'इस आर्टिकल को संविधान के शुरुआती दिनों में ही लागू किया गया था। इसे ट्रांजिशनल अरेंजमेंट करार दिया गया था और बाद में इसकी भाषा बदली गई तो अस्थायी कहा गया। साफ है कि इसे कभी भी हटाया जा सकता था। इसका संदेश ही यह था कि भविष्य में यह मूल संविधान में ही विलीन हो जाएगा।'