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तुर्किये ने इस बार नहीं अलापा कश्मीर राग तो पाक के पेट में उठा मरोड़; एर्दोगन की चुप्पी के क्या मायने

यह ऐसे समय में हुआ है जब तुर्किये भारत की सदस्यता वाले ब्रिक्स समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। एर्दोगन के इस कदम पर पाकिस्तान में बड़ी चर्चा छिड़ी है कि आखिर तुर्किए ने ऐसा क्यों कहा और हर बार की तरह इस बार भी कश्मीर का मुद्दा क्यों नहीं उठाया।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 27 Sep 2024 06:16 PM
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तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने साल 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद से पहली बार इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अपने संबंधोन में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। इस साल लगभग 35 मिनट के अपने संबोधन में उन्होंने गाजा की मानवीय स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया, जहां हमास के खिलाफ इजराइल के हमलों में 40 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा 2019 में वापस लिए जाने के बाद एर्दोगन ने हर साल UNGA सत्र में दुनियाभर के नेताओं के सामने कश्मीर का उल्लेख किया था। इस दौरान वह भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ताएं किए जाने का समर्थन भी करते रहे हैं।

इस साल एर्दोगन ने गाजा में फलस्तीनियों की दशा की ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया और संयुक्त राष्ट्र पर आम लोगों की मौतें रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों की ओर इशारा करते हुए कहा, “दुनिया इन पांच से बड़ी है।” उन्होंने कहा, “गाजा बच्चों और महिलाओं की दुनिया की सबसे बड़ी कब्रगाह बना गया है।” उन्होंने अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के प्रमुख देशों समेत पश्चिमी देशों से हत्याएं रोकने का आह्वान किया।

पाक के पेट में मरोड़

एर्दोगन द्वारा कश्मीर का उल्लेख न करने को तुर्किये के रुख में आए स्पष्ट बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। यह ऐसे समय में हुआ है जब तुर्किये भारत की सदस्यता वाले ब्रिक्स समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। एर्दोगन के इस कदम पर पाकिस्तान में बड़ी चर्चा छिड़ी है कि आखिर तुर्किए ने ऐसा क्यों कहा और हर बार की तरह इस बार भी कश्मीर का मुद्दा क्यों नहीं उठाया। पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र में देश की राजदूत रह चुकीं मलीहा लोधी ने तुर्किये के रुख में आए स्पष्ट बदलाव पर टिप्पणी की है। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, “पिछले पांच साल के विपरीत, राष्ट्रपति एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। उन्होंने 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में ऐसा किया था।”

पाकिस्तान का समर्थन करने वाले एर्दोगन ने पहले कई बार कश्मीर मुद्दा उठाया है, जिसके चलते भारत और तुर्किये के बीच संबंधों में तनाव देखा जा चुका है। एर्दोगन ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कहा था, “एक और कदम जिससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति, स्थिरता व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा, वह है भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत तथा सहयोग के माध्यम से कश्मीर में न्यायपूर्ण व स्थायी शांति की स्थापना।” भारत ने उनकी टिप्पणियों को पूरी तरह अस्वीकार्य बताकर खारिज करता रहा है। भारत कहता रहा है कि तुर्किये को दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना सीखा चाहिए और यह उसकी नीतियों में और ज्यादा गहराई से झलकना चाहिए।

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बता दें कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के मामले में लगातार भारत विरोधी, मनगढ़ंत दुष्प्रचार अभियान चलाता रहा है। भारत सरकार ने हर बार पाकिस्तान की कोशिशों का करारा जवाब दिया है और उसे सिरे से खारिज करता रहा है। भारत ने शुरू से ही कश्मीर को अपना आंतरिक मामला बताया है और इसमें किसी दूसरे और तीसरे पक्ष को सिर घुसेड़ने से बचने की सलाह दी है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, नई दिल्ली ने क्षेत्र में खासकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने और उसमें पाकिस्तान की भूमिका के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी बातचीत की है। यही वजह रही कि तुर्किए जैसे पाकिस्तान के मित्र देश ने अब जम्मू-कश्मीर पर बात करने से खुद को किनारा कर लिया है।

तुर्की के इस दांव के पीछे क्या है

हाल ही में यूएनजीए के दौरान एर्दोगन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच बैठक हुई लेकिन इसमें कश्मीर का कोई जिक्र नहीं हुआ। इसके बजाय, उन्होंने गाजा जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। शरीफ ने बाद में सोशल मीडिया पर अपनी चर्चाओं के बारे में पोस्ट किया, लेकिन कश्मीर को चिंता का विषय नहीं बताया।

दरअसल, इसे कश्मीर मुद्दे पर तुर्की के रुख में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। तुर्किए ब्रिक्स देशों के गठबंधन में शामिल होना चाह रहा है, जिसमें भारत एक अहम भागीदार है। यही वजह रही कि कुछ महीने पहले दोनों इस्लामिक देशों के बीच कश्मीर मुद्दे को बहुपक्षीय मंच पर उठाने की आपसी सहमति के बावजूद एर्दोगन ने उस पर चुप्पी साध ली। (भाषा इनपुट्स के साथ)

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