बेंगलुरु की कॉलोनी को 'पाकिस्तान' कहने वाले जस्टिस की बढ़ीं मुश्किलें, ट्रांसफर पर भी विचार
- जस्टिस श्रीशानंद को लेकर इसलिए भी कॉलेजियम सख्त है क्योंकि उन्होंने पहले भी कई विवादित टिप्पणियां की थीं। श्रीशानंद 6 जून को एक लैंगिक भेदभाव वाली टिप्पणी की थी। इसके अलावा 28 अगस्त को उन्होंने बेंगलुरु के ही एक इलाके को पाकिस्तान बताया था। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और सख्त आपत्ति जताई।
बेंगलुरु की एक कॉलोनी को एक केस की सुनवाई के दौरान 'पाकिस्तान' कहकर संबोधित करने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस वी श्रीशानंद की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। खबर है कि उनके ट्रांसफर पर भी चीफ जस्टिस की अगुवाई वाले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने विचार किया है। उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट के बाहर किसी और उच्च न्यायालय में भेजने पर विचार चल रहा है। यह विचार सुप्रीम कोर्ट के उन टॉप 5 जजों की बेंच कर रही है, जिसने उनकी टिप्पणी पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई की थी और माफी मांग लेने के बाद मामले को बंद कर दिया गया।
चीफ जस्टिस समेत सभी 5 जज कॉलेजियम का भी हिस्सा हैं। इन जजों में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय शामिल हैं। इन जजों की बेंच ने 20 सितंबर को इस मामले पर विचार किया था और फिर अंत में 25 सितंबर को मामला समाप्त कर दिया गया। अब खबर है कि जस्टिस वी. श्रीशानंद के ट्रांसफर पर भी कॉलेजियम में विचार चल रहा है। कर्नाटक हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की 23 सितंबर की रिपोर्ट में जस्टिस श्रीशानंद की कई गैर-वाजिब टिप्पणियों का जिक्र किया गया है। अब इस पर 5 जजों की कॉलेजियम विचार कर रही है कि क्यों न उनका ट्रांसफर कर दिया जाए।
जस्टिस श्रीशानंद को लेकर इसलिए भी कॉलेजियम सख्त है क्योंकि उन्होंने इससे पहले भी कई विवादित टिप्पणियां की थीं। श्रीशानंद 6 जून को एक लैंगिक भेदभाव वाली टिप्पणी की थी। इसके अलावा 28 अगस्त को उन्होंने बेंगलुरु के ही एक इलाके को पाकिस्तान बताया था। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और सख्त आपत्ति जताते हुए ऐक्शन की जरूरत बताई। फिर 21 सितंबर को खुली अदालत में सुनवाई के दौरान जस्टिस श्रीशानंद ने बिना शर्त माफी मांग ली और अपनी टिप्पणी को वापस ले लिया।
डीवाई चंद्रचूड़ ने उनकी टिप्पणी को लेकर कहा था कि भारत के ही किसी हिस्से को पाकिस्तान कहना तो भारत की संप्रभुता और अखंडता के भी खिलाफ है। उनका कहना था कि किसी को भी ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। फिर एक जस्टिस यदि इस तरह के बयान देगा तो फिर देश की अदालतों के बारे में आखिर क्या छवि बनेगी।