संबंध बनाने के लिए महिला का एक बार ‘हां’ कहना सभी अवसरों के लिए नहीं है सहमति: हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान बलात्कार के मामलों को लेकर कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। हाईकोर्ट ने कहा है कि बलात्कार को सिर्फ यौन अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता है और इसे आक्रामकता से जुड़े अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए।

बलात्कार से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस बात को दोहराया है कि महिला के ‘ना’ कहने का मतलब ना ही होता है और इस संबंध में और कोई भी दलील नहीं दी जा सकती है। हाइकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर भी जोर दिया है कि महिला की पिछली अनुमति के आधार पर संबंध बनाने के लिए उसकी इजाजत को पहले से ही तय नहीं माना जा सकता है। इस दौरान कोर्ट ने बलात्कार के 3 आरोपियों की सजा बरकरार रखी है।
उच्च न्यायालय ने आरोपियों द्वारा पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने की कोशिश को मानने से इनकार करते हुए यह टिप्पणियां की हैं। जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और जस्टिस एम डब्ल्यू चांदवानी की पीठ ने 6 मई के अपने फैसले में यह भी कहा कि जब किसी महिला की सहमति के बिना उससे यौन संबंध बनाए जाते हैं, तो यह न सिर्फ उसके शरीर पर हमला होता है, बल्कि यह उसकी मानसिक स्थिति पर भी हमला होता है।
ना का मतलब ना
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बलात्कार को समाज में सबसे अनैतिक और निंदनीय अपराध भी बताया। हाईकोर्ट ने कहा, "एक महिला जब 'नहीं' कहती है, उसका मतलब 'नहीं' ही होता है। इसमें कोई और अस्पष्टता नहीं है और किसी महिला की तथाकथित अनैतिक गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।"
आरोपियों ने क्या तर्क दिया था?
बता दें कि हाईकोर्ट में दायर अपनी अपील में आरोपियों ने दावा किया था कि महिला शुरू में उनमें से एक के साथ संबंध में थी लेकिन बाद में वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में आ गई। इसके बाद नवंबर 2014 में तीनों आरोपियों ने पीड़िता के घर में घुसकर उसके लिव-इन पार्टनर पर हमला किया। इसके बाद आरोपी जबरन उसे एक सुनसान जगह पर ले गए, जहां उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीनों आरोपियों की सजा को रद्द करने से इनकार कर दिया। हालांकि कोर्ट ने उनकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 साल की जेल में बदल दिया।
पार्टनर्स की संख्या से नहीं निर्धारित कर सकते चरित्र
इस दौरान कोर्ट ने कुछ और महत्वपूर्ण बातें कही हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, “एक महिला जब किसी एक समय पर किसी पुरुष के साथ यौन संबंध के लिए सहमति देती है, वह सभी अवसरों पर यौन संबंध के लिए सहमति नहीं देती है। एक महिला का चरित्र या नैतिकता का संबंध उसके सेक्सुअल पार्टनर्स की संख्या से नहीं निर्धारित किया जा सकता है।”