क्या है PAFF, जिसने गुलमर्ग में किया सैनिकों पर हमला, दोनों तरफ से गाड़ी घेरकर फायरिंग
- आतंकवादी घात लगाए रास्ते के दोनों तरफ बैठे थे और गाड़ी के वहां पहुंचते ही ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इससे गाड़ी में बैठे जवानों को बचने या फिर जवाबी ऐक्शन मौका ही नहीं मिल पाया। इसकी जानकारी जिस PAFF ने ली है, उसके बारे में बहुत लोग नहीं जानते हैं।
जम्मू-कश्मीर के मशहूर पर्यटन स्थल गुलमर्ग में गुरुवार को सेना के एक वाहन पर हुए आतंकी हमले में दो जवान और दो पोर्टर शहीद हो गए थे। इस आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट ने ली है। सूत्रों का कहना है कि यह आतंकी हमला सेना के वाहन को दोनों तरफ से घेरकर किया गया था। आतंकवादी घात लगाए रास्ते के दोनों तरफ बैठे थे और गाड़ी के वहां पहुंचते ही ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इससे गाड़ी में बैठे जवानों को बचने या फिर जवाबी ऐक्शन मौका ही नहीं मिल पाया। इसकी जानकारी जिस PAFF ने ली है, उसके बारे में बहुत लोग नहीं जानते हैं।
पुलिस का कहना है कि यह हमला सीमापार आतंकवादियों की करतूत लगता है। इसकी वजह है कि यह नागिन चौकी के पास हुआ, जो लाइन ऑफ कंट्रोल के पास है। ऐसे में पूरी संभावना है कि घुसपैठ करके आए आतंकियों ने ही इस हमले को अंजाम दिया है। इसके अलावा PAFF को संचालित भी पाकिस्तान में बैठे हैंडलर ही करते हैं। इसका गठन 2020 में किया गया था और इसे जैश-ए-मोहम्मद का ही नया चेहरा माना जाता है। बीते कुछ सालों में कश्मीर घाटी में नए-नए नामों के साथ आतंकी संगठन सक्रिय हुए हैं। इनमें से ही एक यह भी है।
इसके अलावा द रेजिस्टेंस फोर्स भी काफी दिनों से सक्रिय है, जिसे लश्कर का एक चेहरा माना जाता है। यही नहीं यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट और गजनवी फोर्स जैसे संस्थान भी उभरे हैं। इनमें से ज्यादातर संगठन पाकिस्तान में बैठे हैंडलर ऑपरेट कर रहे हैं। पिछले दिनों भी जम्मू-कश्मीर पुलिस की इंटेलिजेंस यूनिट ने 10 जिलों में छापेमारी की थी, जिसमें तहरीक लबैक या-मुस्लिम नाम के संगठन का खुलासा हुआ था। इसी तरह कई अन्य संगठन भी पैदा होते रहे हैं। बता दें कि PAFF का गठन जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने और राज्य के पुनर्गठन के बाद हुआ था। माना जाता है कि जैश ने अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए नए चेहरे के साथ इसका गठन किया था।
अहम बात यह है कि इसके नाम के साथ जैश-ए-मोहम्मद ने यह शरारत की है कि लोगों को सेकुलर चेहरे वाला कोई संगठन नजर आए। आमतौर पर अब आतंकियों की रणनीति भी पहले से अलग है। अब वे कुछ ही हथियारबंद लड़ाके भर्ती कर रहे हैं। वहीं ओवरग्राउंड वर्कर, समर्थकों के तौर पर भी अन्य काफी लोगों को रखते हैं। इससे वे आतंकी समूह की गतिविधियों को आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। अकसर इसके लिए टेलीग्राम जैसे मेसेजिंग ऐप का इस्तेमाल किया जाता है।