कब तक पूछेंगी, मैं तो पूछूंगी... कोर्ट रूम में ही भिड़ गए चीफ जस्टिस और सीनियर वकील; खूब हुई नोकझोंक
बार अध्यक्ष इतने पर भी नहीं रुके। उन्होंने कहा कि क्या आप इस तरह से केस सुनना चाहती हैं, यहां तक कि आप वकीलों को बोलने की इजाजत भी नहीं दे रही हैं। अब बहुत हो गया…
गुजरात हाई कोर्ट में आज (शुक्रवार, 17 जनवरी को) तब माहौल काफी गरमा गया, जब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुनीता अग्रवाल और वरिष्ठ वकील बृजेश जे त्रिवेदी सुनवाई के बीच में ही सवाल पूछने पर आपस में भिड़ गए। इस दौरान दोनों के बीच खूब देर तक तीखी नोकझोंक होती रही। वरिष्ठ वकील त्रिवेदी, जो हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, इस बात से चीफ जस्टिस पर नाराज हो उठे कि उनका जवाब पूरा हुए बिना ही वो सवाल पूछ बैठती हैं।
बार अध्यक्ष ने हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस के इस आचरण की आलोचना की और कहा कि वह वरिष्ठ अधिवक्ताओं सहित अन्य वकीलों को कभी भी अपनी दलीलें पूरी करने ही नहीं देतीं। इस दौरान उन्होंने चीफ जस्टिस के सामने ही लॉर्ड फ्रांसिस बेकन के "जजों के बोलने की आदत" से जुड़े एक उद्धरण का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा, "यह बार-बार उल्टा हो रहा है, न्यायालय के हरेक वरिष्ठ अधिवक्ता, अधिवक्ता इसे सहन करते रहे हैं। यह उनकी दयालुता है। मैंने 2023 में लॉर्ड फ्रांसिस बेकन का एक अच्छा उद्धरण इस्तेमाल किया था। मैं इसे दोहराना नहीं चाहता। मुझे उम्मीद है कि आपको वह याद होगा... मैं कोई न्यायाधीश नहीं हूँ, ऐसा बोलने वाले एक न्यायाधीश के बारे में ही है।"
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस और वरिष्ठ वकील त्रिवेदी के बीच कोर्ट रूम में तीखी भिड़ंत तब हुई, जब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस प्रणव त्रिवेदी की पीठ अवैध निर्माण के मुद्दे से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में वकील त्रिवेदी याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे थे। इसी दौरान जस्टिस अग्रवाल ने वकील त्रिवेदी से कहा, "मिस्टर एडवोकेट, कृपया मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए। मैं कुछ बयान दे रही थी। मैं आपसे कुछ पूछ रही थी, आपने मुझे अपना सवाल पूरा करने नहीं दिया।"
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने वकील त्रिवेदी से कहा कि वकीलों को सवाल सुनना चाहिए और उसके बाद ही जवाब देने चाहिए। इस पर त्रिवेदी ने कहा, "आप कितना सवाल पूछेंगी मैडम जज? खैर आप अपनी बात कह सकती हैं।" इस पर चीफ जस्टिस अग्रवाल भड़क गईं। उन्होंने फिर टिप्पणी की कि वकील को चाहिए कि वह अदालत को बोलने दे। इस पर त्रिवेदी ने कहा, "मुझे लगता है कि मुझे भी यही बात कहनी चाहिए लेकिन कोई बात नहीं। मैं इसमें पड़ना नहीं चाहता। " इसके बाद त्रिवेदी ने कहा कि अदालत को भी चाहिए कि वह वकीलों को अपनी बात पूरी करने की अनुमति दे।
वकील इतने पर भी नहीं रुके। उन्होंने चीफ जस्टिस के व्यवहार पर नाराजगी जताई और व्यंगात्मक लहजे में कहा, “मुझे लगता है कि यह तरीका सही नहीं है। अदालत को किसी लंबित मामले पर फैसला करना चाहिए... मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए। मैं सवाल समझ गया। सवाल को पहले ही समझ लेना मेरी गलती थी और मुझे इसका खेद है।”
इसके बाद त्रिवेदी ने अपनी दलीलें जारी रखीं लेकिन चीफ जस्टिस अग्रवाल कुर्सी पर सिर टिकाकर एकटक ऊपर छत की ओर देखती रहीं। उधर, त्रिवेदी ने अपनी दलीलें जारी रखीं। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश की ओर देखते हुए उन्होंने अदालत से मामले को किसी दूसरी पीठ में भेजने का अनुरोध किया और कहा कि मुख्य न्यायाधीश को जनहित याचिका पर इस तरह से विचार नहीं करना चाहिए।
वकील इतने पर भी नहीं रुके। उन्होंने कहा, " क्या आप इस तरह से केस सुनना चाहती हैं, यहां तक कि आप वकीलों को बोलने की इजाजत भी नहीं दे रही हैं। बहुत हो गया...आप इस केस को छोड़ दीजिए और इसे किसी दूसरी बेंच में भेज दीजिए। आपको इस तरह से व्यवहार नहीं करना चाहिए कि वकील दलील दे और आप कहीं और देखती रहें। मेरा अनुरोध है कि आप इस मामले को छोड़ दें।"