कुछ लोगों को राष्ट्रहित का ज्ञान नहीं, दुश्मनों संग मिले; राहुल गांधी पर बोले उपराष्ट्रपति धनखड़
- उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे व्यक्ति स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझते। वे यह नहीं समझते कि इस देश की सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है। उन्होंने कहा, 'मुझे दुख और पीड़ा है कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को राष्ट्रीय हित का कोई ज्ञान नहीं है।'उन्होंने कहा कि एक सच्चा भारतीय कभी भी दुश्मनों का साथ नहीं देगा।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अमेरिका दौरे में इल्हान उमर जैसी विवादित सांसद और तख्तापलट के माहिर कहे जाने वाले डोनाल्ड लू से मुलाकात पर विवाद हो रहा है। इस बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को राष्ट्रीय हित का कोई ज्ञान नहीं है। संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति का देश के दुश्मनों में शामिल होना निंदनीय, घिनौना और असहनीय है। धनखड़ ने संसद भवन परिसर में राज्यसभा सचिवालय में इंटर्नशिप कर रहे छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि देश के बाहर हर एक भारतीय को राष्ट्र का राजदूत बनना होगा।
उन्होंने कहा, 'यह कितना दुखद है कि संवैधानिक पद पर बैठा एक व्यक्ति ठीक इसका उलटा कर रहा है। इससे अधिक निंदनीय, घिनौना और असहनीय कुछ नहीं हो सकता कि आप देश के शत्रुओं के साथ शामिल हो जाएं।' उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे व्यक्ति स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझते। वे यह नहीं समझते कि इस देश की सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी है। उन्होंने कहा, 'मुझे दुख और पीड़ा है कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को राष्ट्रीय हित का कोई ज्ञान नहीं है।'उन्होंने कहा कि एक सच्चा भारतीय कभी भी दुश्मनों का साथ नहीं देगा।
धनखड़ ने कहा, ‘मैं इस बात से दुखी और परेशान हूं कि महत्वपूर्ण पद पर बैठे कुछ लोगों को भारत के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्हें न तो हमारे संविधान का कोई ज्ञान है और न ही उन्हें राष्ट्रीय हित की कोई जानकारी है।’ उन्होंने कहा कि आज जो कुछ भी हो रहा है उसे देखकर दिल दहल रहा है। इस आज़ादी को पाने में, इस आज़ादी की रक्षा करने में और इस देश की रक्षा करने में सर्वोच्च बलिदान दिया है। इसे हमेशा याद रखा जाना चाहिए। धनखड़ ने कहा, 'हमारे भाई-बहन देश की रक्षा में पूरी तरह तत्पर हैं। माताओं ने अपने बेटे खोये हैं, पत्नियों ने अपने पति खोये हैं। हम अपने राष्ट्रवाद का उपहास नहीं उड़ा सकते।'
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान पवित्र है। इसे संविधान के संस्थापकों, संविधान सभा के सदस्यों द्वारा 18 सत्रों में, बिना किसी व्यवधान, बिना उपद्रव, बिना नारेबाजी और बिना कोई पोस्टर लहराए, तीन साल की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। यह संवाद, चर्चा, सकारात्मक बहस और विचार-विमर्श के प्रभावी तंत्र से ही संभव हो सका था। उनके समक्ष कई मुद्दे विभाजनकारी थे और सहमति बनाना आसान नहीं था। उन्होंने कहा कि अब कुछ लोग हमारे देश को विभाजित करना चाहते हैं। यह अज्ञानता की चरम सीमा है।