कौन हैं मराठा आरक्षण आंदोलन का चेहरा बने मनोज पाटिल, जमीन तक बेच डाली
मनोज पाटिल ने 12वीं क्लास में पढ़ाई छोड़ दी थी और एक होटल में काम करने लगे थे। इसी दौरान वह मराठा समुदाय से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने लगे। वह बीते करीब एक दशक से मराठा आंदोलन से जुड़े हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में बीते कुछ दिनों से मराठा आरक्षण का मसला फिर से चर्चा में है। जालना जिले के एक गांव अंतरवाली सराती में मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन चल रहा है। इसमें आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं। शुक्रवार को आंदोलनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज भी कर दिया था, जिसके चलते विवाद बढ़ गया था। हालात यह हैं कि गृह मंत्रालय संभालने वाले देवेंद्र फडणवीस घिर गए हैं। सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम अजित पवार ने लाठीचार्ज वाले कांड से किनारा कर लिया है। वहीं होम मिनिस्ट्री संभालने वाले देवेंद्र फडणवीस निशाने पर हैं। मराठा आंदोलन के समर्थक उनका इस्तीफा मांग रहे हैं। खबर है कि मनोज पाटिल को सरकार ने बातचीत के लिए भी बुलाया है।
इस बीच महाराष्ट्र सरकार ने एक मीटिंग बुलाई है, जिसमें दोनों उपमुख्यमंत्री और सीएम एकनाथ शिंदे शामिल होंगे। इस बीच हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर मनोज पाटिल कौन हैं, जो अचानक चर्चा में आ गए हैं और मराठा आंदोलन का चेहरा बन गए हैं। मराठी मीडिया के मुताबित मनोज पाटिल बीते कई सालों से मराठा आंदोलन के लिए सक्रिय हैं। वह मूलत: बीड़ जिले के मातोरी गांव से आते हैं। हालांकि बीते कुछ सालों से उनका परिवार जालना जिले के अम्बाड तालुका के अंकुश नगर में रह रहा है। यहीं पर वह राजनीतिक रूप से सक्रिय भी हैं। वह यहां अपने माता-पिता, तीन भाईयों, पत्नी और चार बच्चों के साथ रहते हैं।
12वीं क्लास में छोड़ दी थी पढ़ाई, फिर मराठा आंदोलन से जुड़ गए
मनोज पाटिल ने 12वीं क्लास में पढ़ाई छोड़ दी थी और एक होटल में काम करने लगे थे। इसी दौरान वह मराठा समुदाय से जुड़ी गतिविधियों में शामिल होने लगे। कहा जाता है कि वह बीते करीब एक दशक से मराठा आंदोलन से जुड़े हुए हैं। मराठा आंदोलन का उन्होंने जालना में 2016 और 2018 में नेतृत्व किया था। अब एक बार फिर से जिले में ही वह धरने पर बैठे हैं, जिस पर पुलिस के लाठीचार्ज ने राजनीतिक रंग ले लिया है। बेहद कमजोर परिवार में जन्मे मनोज पाटिल ने मराठा आरक्षण आंदोलन के लिए बीते कई सालों से खुद को झोंक रखा है।
मराठा आंदोलन के लिए अपनी पैतृक जमीन तक बेच दी
यही नहीं उनके दोस्त बताते हैं कि उनकी पैतृक जमीन भी 4 एकड़ ही थी, जिसमें से उन्होंने 2 एकड़ बेच दी और उससे मिली रकम को भी आंदोलन में ही खर्च किया है। 2011 से अब तक मनोज पाटिल ने मराठा आरक्षण से जुड़े 30 से ज्यादा आंदोलन में हिस्सा लिया है। औरंगाबाद में 2014 में हुई एक बड़ी रैली का नेतृत्व भी मनोज पाटिल ने ही किया था। मराठा समुदाय के मसलों को उठाने के लिए मनोज ने 'शिवबा' नाम से एक संगठन भी शुरू किया है। 2021 में भी जालना के पिंपलगांव में तीन महीने तक धरना दिया था।
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