हिमाचल प्रदेश के DGP के ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, IPS अफसर को फिर HC जाने का निर्देश
Himachal Pradesh DGP Transfer Row: सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने हाई कोर्ट से अपने 26 दिसंबर के आदेश को वापस लेने की कुंडू की याचिका पर दो सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पालमपुर के एक व्यवसायी की शिकायत के मद्देनजर राज्य सरकार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) संजय कुंडू को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीजीपी के खिलाफ प्रतिकूल निर्देश देने से पहले अधिकारी की बात नहीं सुनी गई।
भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने हाई कोर्ट से अपने 26 दिसंबर के आदेश को वापस लेने की कुंडू की याचिका पर दो सप्ताह के भीतर फैसला करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि जब तक आईपीएस अधिकारी कुंडू के आवेदन पर फैसला नहीं आ जाता, तब आयुष विभाग में प्रमुख सचिव के रूप में उनके स्थानांतरण पर रोक रहेगी।
सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता के रिकॉल आवेदन पर निर्णय होने तक, हाई कोर्ट के ट्रांसफर ऑर्डर पर रोक रहेगी। चूंकि याचिकाकर्ता की नई पोस्टिंग उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार है, इसलिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।''
खंडपीठ का आदेश इस सप्ताह की शुरुआत में कुंडू द्वारा दायर एक याचिका पर आया है, जिसमें शिकायत की गई थी कि उच्च न्यायालय ने उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना 26 दिसंबर को उनके खिलाफ अनुचित निर्देश जारी कर दिया है। 26 दिसंबर को, हिमाचल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को राज्य पुलिस प्रमुख और कांगड़ा के पुलिस अधीक्षक को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था ताकि वे पालमपुर के व्यवसायी निशांत शर्मा की जबरन वसूली और उनकी जान को खतरा होने की शिकायत की जांच को प्रभावित न कर सकें।
28 अक्टूबर को दायर अपनी शिकायत में पालमपुर के व्यवसायी निशांत शर्मा ने आरोप लगाया था कि उन्हें उन्हें, उनके परिवार और संपत्ति को अपने व्यापारिक भागीदारों से खतरे का आरोप लगाया था। शर्मा ने कुंडू के आचरण पर भी सवाल उठाया था और आरोप लगाया था कि अधिकारी ने उन्हें फोन किया था और शिमला आने के लिए कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वह इस मामले में "असाधारण परिस्थितियों" के कारण हस्तक्षेप कर रही है, "विशेष रूप से तब जब प्रतिवादी गृह सचिव ने मामले में प्रस्तुत सामग्री पर आंखें मूंद ली हैं। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि डीजीप को अन्य पदों पर स्थानांतरित कर दिया जाए, जहां उन्हें कथित जांच को प्रभावित करने का कोई अवसर नहीं मिल सके।” इसके बाद मंगलवार को राज्य सरकार ने कुंडू को आयुष विभाग में प्रधान सचिव के पद पर तैनात कर दिया था।
हाई कोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए, कुंडू का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने बुधवार को पीठ के समक्ष इस बात पर जोर दिया कि कुंडू चार महीने से भी कम समय में सेवानिवृत्त होने वाले हैं और वर्तमान प्रकृति का एक प्रतिकूल आदेश उनके 35 साल लंबे करियर को खराब कर देगा, जबकि मामले में उनकी कोई कोई गलती नहीं है। रोहतगी ने दावा किया कि कुंडू ने शर्मा और एक वरिष्ठ वकील के बीच मध्यस्थता करने की कोशिश की थी जो एक निजी विवाद में उलझे हुए थे और अधिकारी ने अपने आधिकारिक लैंडलाइन का उपयोग करके शर्मा से सिर्फ एक बार बात की थी। वरिष्ठ वकील ने कहा कि दोनों के बीच विवाद से उनका कोई लेना-देना नहीं है और कुंडू इस मामले की जांच सीबीआई से कराने के इच्छुक हैं।
शर्मा की ओर से पेश हुए वकील राहुल शर्मा ने दावा किया कि न केवल डीजीपी कुंडू ने उनके मुवक्किल पर दबाव डाला बल्कि उनके मुवक्किल को सर्विलांस पर भी रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों वकीलों को सुनने के बाद कहा कि चूंकि दोनों पक्ष इस बात से सहमत हैं कि विवादित आदेश पारित करने से पहले कुंडू को नहीं सुना गया है, इसलिए अधिकारी को हाई कोर्ट के समक्ष रिकॉल याचिका दायर करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जहां गुरुवार को मामले की फिर से सुनवाई होनी है। अदालत ने कहा, "हम उच्च न्यायालय के आदेश पर तब तक रोक लगा रहे हैं जब तक कि उच्च न्यायालय वापस बुलाने के आवेदन पर सुनवाई नहीं कर लेता।"