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रेडियो कॉलर के कारण नहीं मरे चीते, इन दो जगहों पर छोड़ा जाएगा अगला बैच; प्रोजेक्ट हेड ने बताया प्लान

भारत में विलुप्त हो चुके चीतों के पुनरुद्धार को इस महीने एक साल पूरा हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को अफ्रीकी चीतों को कुनो में जंगल में छोड़ा था।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 15 Sep 2023 12:34 PM
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कई दशकों बाद भारत में आए चीतों की मौत को लेकर अनेकों सवाल खड़े हो रहे हैं। चीतों की गर्दन में लगे रेडियो कॉलर को लेकर भी सवाल उठे। हालांकि अब प्रोजेक्ट हेड ने इस तरह के सवालों को खारिज कर दिया। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क हो रही चीतों की मौत को रेडियो कॉलर से जोड़ा जा रहा है। लेकिन प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख ने संभावित संक्रमण की अटकलों को खारिज कर दिया है। समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख एसपी यादव ने कहा कि दुनिया भर में रेडियो कॉलर द्वारा जानवरों की निगरानी की जाती है और यह एक सिद्ध तकनीक है। एसपी यादव राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के सदस्य सचिव भी हैं।

उन्होंने कहा, “इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि किसी चीते की मौत रेडियो कॉलर के कारण हुई है। मैं कहना चाहता हूं कि रेडियो कॉलर के बिना जंगल में निगरानी संभव नहीं है। कुल 20 चीते नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए थे, जिनमें से 14 (वयस्क) पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अच्छा कर रहे हैं। भारत की धरती पर चार चीतों का जन्म हुआ है और उनमें से एक अब छह महीने का हो गया है और ठीक है। तीन शावकों की मौत जलवायु संबंधी कारकों के कारण हुई।''

भारत में विलुप्त हो चुके चीतों के पुनरुद्धार को इस महीने एक साल पूरा हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को अफ्रीकी चीतों को कुनो में जंगल में छोड़ा था। यह भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में एक ऐतिहासिक क्षण था। इस साल मार्च से कूनो नेशनल पार्क में नौ चीतों की मौत हो चुकी है। एसी यादव ने कहा कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में "शिकार या अवैध शिकार" के कारण किसी चीते की मौत नहीं हुई।

उन्होंने कहा, "आम तौर पर, दूसरे देशों में अवैध शिकार से मौतें होती हैं, लेकिन हमारी तैयारी इतनी अच्छी थी कि एक भी चीता शिकार, अवैध शिकार या जहर के कारण नहीं मरा है.. और न ही कोई चीता मानव संघर्ष के कारण मरा है.. हमने पिछले वर्ष में सफलतापूर्वक मील के पत्थर हासिल किए। चीते को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में ले जाने का प्रयास कभी नहीं किया गया और यह पहला जंगल से जंगल ट्रांसफर था और इसमें बहुत सारी चुनौतियां थीं। आमतौर पर, इस तरह की लंबी दूरी के ट्रांसफर में, चीता मर सकता है क्योंकि यह एक संवेदनशील जानवर है लेकिन यहां ऐसी कोई मौत नहीं हुई और ट्रांसफर बहुत निर्बाध था।"

प्रत्येक चीते की गर्दन में रेडियो कॉलर लगाया गया है, जिससे वन्यजीव अधिकारी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी के माध्यम से रियल टाइम में उनकी गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं। पूरे कुनो नेशनल पार्क में रणनीतिक रूप से तैनात सीसीटीवी कैमरों के एक व्यापक नेटवर्क के माध्यम से निरंतर निगरानी बनाए रखी जाती है। इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के अलावा, चीतों की गतिविधियों की निगरानी के लिए अतिरिक्त सुविधाजनक स्थान प्रदान करने के लिए वन क्षेत्र में "मचान" (ऊंचे अवलोकन मंच) स्थापित किए गए हैं।

ट्रैकिंग और अवलोकन प्रयासों को सेंट्रलाइज्ड करने के लिए राष्ट्रीय पार्क के भीतर एक समर्पित चीता निगरानी और कंट्रोल रूम स्थापित किया गया है। फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों के ट्रांसफर के बाद, अगले आठ से 10 वर्षों तक प्रतिवर्ष 12 चीतों को शिफ्ट करने की योजना है। 

अधिकारी ने कहा, "चीतों के अगले बैच के लिए दो स्थानों पर तैयारी चल रही है। इनमें एक मध्य प्रदेश में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य है, जहां चीतों के रहने की उपयुक्त जगह है। यहां बाड़े बनाने का काम बहुत तेज गति से चल रहा है.. मुझे उम्मीद है कि नवंबर-दिसंबर में बाड़े का काम पूरा हो जाएगा और निरीक्षण के बाद वहां चीतों को लाने का निर्णय लिया जाएगा।''

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