BJP के लिए ये 6 मुद्दे बन सकते हैं गले की फांस, हिमाचल की तरह आगामी 9 राज्यों के चुनावों में दे सकते हैं झटका
केंद्र सरकार के आकंड़ों के मुताबिक, 1 मार्च 2022 तक केंद्र सरकार में 34.65 लाख कर्मचारी कार्यरत थे। राज्यों के कर्मचारियों की संख्या अलग-अलग है।नई पेंशन व्यवस्था से केंद्रीय और राज्यों के कर्मी नाराज
हालिया चुनावों में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी (BJP) ने गुजरात में भले ही प्रचंड जीत हासिल की हो लेकिन वह हिमाचल प्रदेश में अपनी सत्ता नहीं बचा पाई। पार्टी ने वहां 43 फीसदी वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 0.9 फीसदी ज्यादा वोट शेयर हासिल कर 40 सीटों पर कब्जा कर लिया और सरकार बना ली। इतना कम मत प्रतिशत से पीछे रहने से बीजेपी के हाथ मायूसी लगी है।
माना जा रहा है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था (Old Pension Scheme) की बहाली, बेरोजगारी, महंगाई समेत कई स्थानीय मुद्दों की वजह से बीजेपी को हिमाचल में हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में पार्टी की नजर अब मिशन 2024 और नए साल में होने वाले 9 राज्यों (कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम) के विधानसभा चुनावों पर है।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि आगे भी बीजेपी की राह बहुत आसान नहीं रहने वाली है क्योंकि विपक्ष ने बीजेपी की कमजोर नस पहचान ली है और एंटी इनकमबेंसी के साथ उन सियासी मुद्दों का तड़का लगाने के लिए विपक्षी दल बेकरार हैं। आइए जानते हैं ऐसे मुद्दे कौन से हैं-
पुरानी पेंशन व्यवस्था:
कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने का वादा चुनावी घोषणा पत्र में किया था, जिसे काफी पसंद किया गया। इससे पहले कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ और आप शासित पंजाब की सरकारें इसे लागू कर चुकी हैं। इसके अतिरिक्त झारखंड, जहां कांग्रेस सरकार में शामिल है, में भी पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल हो चुकी है। रेलवे मेन्स यूनियन समेत कई कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन कर रहे हैं।
केंद्र सरकार के आकंड़ों के मुताबिक, 1 मार्च 2022 तक केंद्र सरकार में 34.65 लाख कर्मचारी कार्यरत थे। राज्यों के कर्मचारियों की संख्या अलग-अलग है। नई पेंशन व्यवस्था से अधिकांश केंद्रीय और राज्य सरकारों के कर्मचारी नाराज बताए जा रहे हैं। इनके अलावा 14 लाख आर्म्ड फोर्सेज के जवान भी हैं जो ओल्ड पेंशन स्कीम से नाराज बताए जा रहे हैं। चूंकि बीजेपी और सहयोगी दलों को छोड़ अन्य पार्टियां अब पुरानी पेंशन बहाली की बात करने लगी हैं तो संभव है कि ऐसे कर्मचारियों का बड़ा हिस्सा बीजेपी के खिलाफ वोट करे। 21 से 28 नवंबर के बीच आरएसएस से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ के नेताओं ने इस बावत केंद्रीय वित्त मंत्री से मुलाकात की है और 2024 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए पुरानी पेंशन की बहाली का सुझाव दिया है।
महंगाई भत्ते का बकाया:
कोरोना महामारी की वजह से केंद्रीय कर्मियों और राज्य सरकार के कर्मियों को दिए जाने वाले महंगाई भत्ते (DA) का ऐलान करने और उसके भुगतान में देरी हुई थी। अब सरकार ने उसे पटरी पर ला दिया है लेकिन 18 महीने के महंगाई भत्ते का बकाया अभी भी इन कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए एक मुद्दा बना हुआ है।
केंद्र सरकार ने दो दिन पहले ही संसद को सूचित किया है कि 18 महीने के बकाया महंगाई भत्ते का भुगतान करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है। माना जा रहा है कि 34.65 लाख केंद्रीय कर्मचारी, 14 लाख सशस्त्र बलों के जवान और 52 लाख पेंशनर समेत राज्यों के भी कर्मी और पेशनर प्रभावित हुए हैं। यह मुद्दा भी जहां बीजेपी को परेशान कर सकती है, वहीं विपक्षी पार्टियों के लिए यह चुनावों में एक लोकलुभावन मुद्दा हो सकता है।
वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली रियायतें:
कोरोना वायरस महामारी के दौरान यानी मार्च 2020 से लेकर मार्च 2022 तक रेलवे ने वरिष्ठ नागरिकों को रेल टिकट पर रियायत न देकर 1500 करोड़ रुपये की बचत की है। इनमें 60 वर्ष से अधिक आयु के 4.46 करोड़ पुरुष, 58 वर्ष से अधिक आयु की 2.84 करोड़ महिलाएं और 8,310 ट्रांसजेंडर लोग शामिल हैं। यानी सवा चार करोड़ से ज्यादा लोग केंद्र सरकार के इस कदम से नाराज बताए जा रहे हैं क्योंकि अभी भी ये रियायतें नहीं मिल रही हैं। महिलाओं को 50 फीसदी जबकि पुरुषों और ट्रांसजेंडर को रेलवे किराए पर 40 फीसदी की छूट मिलती थी।
बेरोजगारी और अग्निपथ योजना:
देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। बीजेपी ने 2 करोड़ सालाना नौकरियां देनो का वादा किया था, जो पूरा नहीं हो सका। अब सेना, नौसेना और वायु सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए सरकार अग्निपथ योजना लेकर आई है, जो मोटे तौर पर चार साल का एक अल्पकालिक अनुबंध है। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा योजना की घोषणा के बाद ही जून में देश के कई हिस्सों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
हिमाचल प्रदेश, जिसे सेना के उम्मीदवारों के लिए जाना जाता है, युवाओं ने योजना को तत्काल वापस लेने और नियमित भर्ती को फिर से शुरू करने की मांग की थी। हिमाचल चुनावों में ये मुद्दा भी छाया रहा और इसने बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कीं। आगामी चुनावों में यह मुद्दा राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में भी बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
महंगाई और बढ़ती ईएमआई:
महंगाई पर लगाम लगाने में सरकारी कदम नाकाफी साबित हुए हैं। तेल और गैस की कीमतें अभी भी आसमान छू रही हैं। खाद्य तेल और अनाज भी ऊंचे दाम पर मिल रहे हैं। हालांकि, सब्जियों और फलों के दाम में थोड़ी कमी आई है और नवंबर में खुदरा महंगाई दर गिरी है लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले दिनों 0.35 फीसदी रेपो रेट बढ़ा दिया है।
पिछले एक साल में RBI ने कुल पांच बार रेपो रेट बढ़ाया है। इससे मई 2022 से दिसंबर 2022 तक ब्याज दरों में 2.25 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। बढ़ती ब्याज दरों से मिडिल क्लास के लोगों की जेब पर बोझ पड़ा है। उनकी ईएमआई पहले से महंगी हो चुकी है, जबकि उस अनुपात में महंगाई भत्ता नहीं बढ़ी और न ही आय में बढ़ोत्तरी हुई है।
जातिगण जनगणना, आरक्षण और किसान :
उपरोक्त मुद्दों के अलावा जातीय जनगणना और आरक्षण भी बीजेपी के लिए गले की फांस बन सकता है। छत्तीसगढ़ ने हाल ही में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 76 फीसदी कर दिया है। इनके अलावा कई गैर बीजेपी दल जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं और उसकी वकालत करते रहे हैं। इसके अलावा ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट से वैध करार दिए जाने के बाद ओबीसी और दलितों के आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने की मांग तेज हो गई है, जो बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में मुश्किलें खड़ी कर सकता है। किसानों ने भी फिर से आंदोलन करने की चेतावनी दी है। लिहाजा, यह मुद्दा भी बीजेपी के लिए नाक की बाल साबित हो सकता है।