कैसे ब्रिगेडियर रावत ने संघर्ष प्रभावित कांगो में यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग फोर्स का चेहरा बदल दिया
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत की 8 दिसंबर को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। ढाई मोर्चे के युद्ध से लेकर हाइब्रिड वॉरफेयर तक रावत आक्रमण सैन्य रणनीति को बनाने और अंजाम देने में...
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत की 8 दिसंबर को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई। ढाई मोर्चे के युद्ध से लेकर हाइब्रिड वॉरफेयर तक रावत आक्रमण सैन्य रणनीति को बनाने और अंजाम देने में माहिर थे। आइए अभी उनकी कॉन्गो पोस्टिंग की कहानी के बारे में जानते थे। कैसे उन्होंने गृहयुद्ध प्रभावित कॉन्गो में यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग का चेहरा बदल दिया।
ये है ब्रिगेडियर बिपिन रावत की कहानी
13 साल पहले जब बिपिन रावत ने कॉन्गो में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में यूनाइटेड नेशंस के नार्थ किवु ब्रिगेड का कामकाज संभाला था तो उस वक्त यूनाइटेड नेशंस पीसकीपिंग फोर्सेस के लिए चीजें ठीक नहीं चल रही थी। स्थानीय लोग पीसकीपिंग को घृणा की नजरों से देखते थे। लोगों का कहना था कि पीसकीपिंग ने उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं किया है। गुस्साई भीड़ अधिकतर यूनाइटेड नेशंस की गाड़ियों पर पथराव किया करती थी।
अगस्त 2008 में जब रावत को कॉन्गो भेजा गया था तब वह एक ब्रिगेडियर थे। उन्होंने जल्दी ही चीजों को भांपा और नए सिरे से काम करना शुरू किया। उन्होंने खुद बताया था कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर के चैप्टर VII के बावजूद, कुछ हालात में बल के इस्तेमाल को अधिकृत करने के बावजूद, हम अपने उपकरणों के साथ नहीं लड़ रहे थे। ऐसे में हमने अपने उपकरणों से लड़ने का फैसला किया। इसके बाद आम लोगों को लगने लगा कि हम उनकी रक्षा के खातिर बहुत आगे तक जाने को तैयार हैं।
पत्थर मारने से लेकर तारीफ करने वाले कॉन्गो के लोग
बिपिन रावत ने बढ़ते संघर्ष को देखते हुए टोंगा, कन्याबायोंगा, रुत्शुरु और बुनागाना जैसे फ्लैशप्वाइंट में विद्रोहियों को कुचलने और शांति लागू करने के लिए मशीनगनों और तोपों से लैस पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों की तैनाती का आदेश दिया। उन्होंने आम लोगों कि सुरक्षित जगह पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल किया और विद्रोही गुटों पर अटैक हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया।
ऐसे में अपने काम की वजह और उल्लेखनीय बदलाव के कारण जनता के गुस्से का सामना करने वाले सैनिक जल्द ही स्थानीय समुदायों के लिए आशा की उम्मीद बन गए। रवैये में बदलाव साफ दिखाई दिया जब कांगो सेना और विद्रोही लड़ाकों के बीच गोलीबारी में फंसे हजारों स्थानीय लोगों ने गोमा से 80 किलोमीटर दूर स्थित मासीसी में एक सैन्य अड्डे में शरण ली थी। यहां लोगों ने सैनिकों के लिए ताली बजाई और शांति सैनिकों के लिए खुशी मनाई क्योंकि भारतीय हेलीकॉप्टर विद्रोही ठिकानों पर रॉकेट दागे जिसके कारण कॉन्गो की सेना उन्हें पीछे धकेल सकी थी।