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शिवसेना पर फैसले का रामाराव कनेक्शन, जब ससुर की पार्टी पर दामाद ने किया कब्जा, एनटीआर जैसा उद्धव का हाल

एनटी रामाराव साल 1995 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसी दौरान उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने बगावत कर दी। नायडू के साथ कई विधायक भी आ खड़े हुए और रामाराव की सीएम कुर्सी चली गई।

Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 17 Feb 2023 05:15 PM
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चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में शुक्रवार को मान्यता दी। EC ने उसे 'तीर-कमान' चुनाव चिह्न भी आवंटित करने का आदेश दिया। पार्टी पर नियंत्रण के लिए चली लंबी लड़ाई के बाद इलेक्शन कमीशन का आज 78 पन्नों का आदेश जारी हुआ। आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को राज्य में विधानसभा उपचुनावों के पूरा होने तक 'मशाल' चुनाव चिह्न रखने की अनुमति दी। 28 साल पहले देश की राजनीति में ऐसा ही मामला सामने आया था, जब ससुर की पार्टी पर दामाद ने कब्जा कर लिया। यह राजनीतिक घटनाक्रम आंध्र प्रदेश का है।  

फिल्मकार एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी (TDP) की स्थापना की थी। इस राजनीतिक दल का गठन साल 1983 में हुआ। इसके 9 महीने बाद ही 1983 में रामाराव आंध्र प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री बन गए। यह राज्य में पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। जानना दिलचस्प है कि TDP 1984 से 1989 के दौरान 8वीं लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल बनने वाली पहली क्षेत्रीय पार्टी थी।

राजनीतिक पार्टी के भीतर का सबसे बड़ा उलटफेर!
एनटी रामाराव साल 1995 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसी दौरान उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने बगावत कर दी। नायडू के साथ कई विधायक आ खड़े हुए और रामाराव की सीएम कुर्सी चली गई। कुछ समय बाद ही जनवरी 1996 में एनटी रामाराव का निधन हो गया। इसके बाद चंद्रबाबू नायडू ने धीरे-धीरे सरकार से लेकर संगठन तक पर अपना कब्जा जमा लिया। कहा जाता है कि किसी राजनीतिक पार्टी के भीतर यह सबसे बड़ा उलटफेर था।

राजनीतिक दल के भीतर बगावत के और भी कई किस्से मशहूर हैं। एक मामला बिहार की भी है जहां चाचा ने भतीजे की पार्टी पर कब्जा कर लिया था। जी हां, बिहार के दिग्गज दलित नेता राम विलास पासवान ने 2000 में लोक जन शक्ति पार्टी बनाई थी। वह 2 दशक तक इस दल के कर्ता-धर्ता रहे। मगर, अक्टूबर 2020 में उनका निधन होते ही पार्टी में टूट पड़ गई। पहले तो पार्टी की कमान उनके बेटे चिराग पासवान को मिली। आगे चलकर जून 2021 में LJP के 6 में से 5 सांसदों ने चिराग के खिलाफ बगावत कर दी। पार्टी सांसदों ने उनके चाचा पशुपति पासवान को अपना नेता मान लिया। अब तो लोकसभा में भी पशुपति पासवान की एलजेपी को मान्यता मिल चुकी है।

मालूम हो कि शिवसेना मामले में EC ने शिंदे गुट को पार्टी के 2018 के संविधान में संशोधन कर उसे 1951 के जनप्रतिनिधत्वि कानून की धारा 29ए के तहत राहत दी। साथ ही आयोग की ओर से पार्टियों के रजिस्ट्रेशन के लिए जारी नियमों के अनुसार बनाने का निर्देश दिया गया, जो पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की व्यवस्था बनाने के संबंध में है। फैसेल अनुसार, उद्धव ठाकरे गुट को चिंचवाड़ और कस्बा पेठ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव में 'शिवसेना (उद्धव बालासाहब ठाकरे)' नाम और 'जलती मशाल' का चुनाव चिह्न का इस्तेमाल करने का अधिकार रहेगा। उद्धव गुट को यह नाम और निशान पिछले साल 10 अक्टूबर को आयोग के अंतरिम आदेश में आवंटित किया गया था।

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