चलाने वाले अच्छे हों तो बुरा संविधान भी अच्छा हो सकता है, US में बोले CJI चंद्रचूड़
Chief Justice of India: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का संबोधन ‘रिफॉर्मेशन बियोंड रिप्रजेंटेशन : द सोशल लाइफ ऑफ द कंस्टिट्यूशन इन रेमेडिंग हिस्टॉरिकल रांग्स’ विषय पर था।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बी.आर. अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो, यह अच्छा हो सकता है यदि इसे चलाने वाले लोग ‘अच्छे लोग’ हों। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से कानूनी प्रणाली ने अकसर वंचित सामाजिक समूहों के खिलाफ ‘ऐतिहासिक गलतियों’ को कायम रखने में ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ अदा की हैं। उन्होंने कहा कि ये ऐतिहासिक गलतियां अन्याय को बढ़ावा देती हैं।
वह ‘डॉ. बी. आर. आंबेडकर की अधूरी विरासत’ विषय पर रविवार को मैसाचुसेट्स के वाल्थम स्थित ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी में आयोजित छठे अंतररराष्ट्रीय सम्मेलन को मुख्य वक्ता के तौर पर संबोधित कर रहे थे। मुख्य न्यायाधीश का संबोधन ‘रिफॉर्मेशन बियोंड रिप्रजेंटेशन : द सोशल लाइफ ऑफ द कंस्टिट्यूशन इन रेमेडिंग हिस्टॉरिकल रांग्स’ विषय पर था। इस सम्मेलन का 2023 संस्करण ‘कानून, जाति और न्याय की खोज’ पर केंद्रित था।
भारत में जातिगत असमानताएं भी लोगों को प्रभावित कर रहीं
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि पूरे इतिहास में हाशिए पर रहे सामाजिक समूहों को भयानक एवं गंभीर गलतियों का सामना करना पड़ा है, जो अकसर पूर्वाग्रह और भेदभाव जैसी चीजों से उत्पन्न होती हैं। उन्होंने कहा कि क्रूर दास प्रथा ने लाखों अफ्रीकियों को जबरन उखाड़ फेंका और मूल अमेरिकियों को विस्थापन का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि भारत में जातिगत असमानताएं पिछड़ी जातियों के लाखों लोगों को प्रभावित कर रही हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इतिहास आदिवासी समुदायों, महिलाओं, एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के लोगों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के प्रणालीगत उत्पीड़न के उदाहरणों से भरा पड़ा है।
कानूनी ढांचे को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है
मुख्य न्यायाधीश ने अपने संबोधन में कहा कि कुछ समुदायों के खिलाफ अत्याचार करने और उन्हें हाशिए पर धकेलने के लिए कानूनी ढांचे को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और भारत में, उत्पीड़ित समुदायों को लंबे समय तक मतदान से वंचित रहना भी पड़ा।
भारत की नीतियों ने सहायता की
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आजादी के बाद से भारत की नीतियों ने उत्पीड़ित सामाजिक समूहों को शिक्षा, रोजगार और प्रतिनिधित्व के अवसर देकर उन्हें सहायता प्रदान की है। उन्होंने कहा कि लैंगिक समानता की संवैधानिक गारंटी के बावजूद गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक व्यवस्था कायम रह सकती है। इस कारण लैंगिकता आधारित भेदभाव और हिंसा हो सकती है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इसी तरह जाति-आधारित भेदभाव पर रोक लगाने वाले कानून के बावजूद संरक्षित समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।