बिहार में 90 सालों में घट गईं कौन सी जातियां, किनकी बढ़ती गई आबादी; इनसाइड स्टोरी
बिहार में 90 सालों में ब्राह्मण, राजपूत जैसी कई बिरादरियों की आबादी में बड़ी कमी आई है। वहीं यादव, कोइरी जैसी ओबीसी बिरादरियों की संख्या में इजाफा भी हुआ है। इससे समीकरण बदले नजर आ रहे हैं।

बिहार में जातिगत जनगणना के जो आंकड़े आए हैं, उसने राजनीतिक समीकरणों के भी बदलने की दिशा तय कर दी है। मोटे तौर पर यह आंकड़ा अनुमान के मुताबिक ही है, लेकिन कुछ जातियों की आबादी में बड़ा अंतर भी दिखा है। देश में जातिगत जनगणना आखिरी बार 1931 में हुई थी और आज भी उसे ही आधार मानते हुए राजनीतिक विश्लेषक चर्चा करते हैं। लेकिन अब बिहार में नई गणना ने जो आंकड़े पेश किए हैं, उससे तस्वीर कुछ बदली नजर आ रही है। दरअसल कई जातियों की संख्या में इजाफा हुआ है तो वहीं ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ जैसी कई जातियों की आबादी घट गई है।
राज्य की सबसे अधिक आबादी वाली यादव बिरादरी की संख्या 14 फीसदी है, जो 1931 में 11 फीसदी ही थी। ओबीसी वर्ग की सबसे बड़ी संख्या वाली यादव बिरादरी आबादी में इजाफा होना एमवाई समीकरण के मजबूत होने का संकेत है। इसके अलावा कोइरी समुदाय की आबादी 4.2 फीसदी पाई गई है, जो 1931 में 4.1 फीसदी थी। इसके अलावा तेली बिरादरी की बात करें तो वह 90 साल पहले की तरह ही 2.8 फीसदी पर है। ओबीसी में आने वाले कानू समुदाय की संख्या फिलहाल 2.2 प्रतिशत है, जो 1.6 फीसदी थी। इसके अलावा बढ़ई की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
मल्लाह या निषाद बिरादरी की आबादी भी तेजी से बढ़ी है। 1931 में इनकी संख्या 1.5 फीसदी ही थी, जो अब 2.6 पर्सेंट हो गई है। इस तरह कई समुदाय ऐसे हैं, जिनकी आबादी चुनावी नजरिए से निर्णायक तौर पर बढ़ी है। वहीं ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ और बनिया जैसे समुदायों की आबादी कम हुई है। ब्राह्मणों की आबादी 90 साल पहले बिहार में 4.7 फीसदी थी, लेकिन अब उनकी संख्या 3.65 ही रह गई है। इसी तरह राजपूत भी 4.7 से घटकर 4.2 फीसदी ही रह गए हैं। कायस्थों की आबादी तो लगभग आधी ही रह गई है। 1931 में आंकड़ा 1.2 फीसदी का था, जो अब 0.61 पर्सेंट है।
क्यों बिहार में कम हुई सवर्णों की आबादी, ये दो हैं फैक्टर
समाजशास्त्रियों का मानना है कि रोजगार की तलाश में पलायन और बच्चे पैदा कम होने के चलते सवर्ण बिरादरियों की संख्या कम हुई है। जानकार मानते हैं कि सवर्ण बिरादरियों में रोजगार के लिए पलायन की प्रवृत्ति अधिक है और उनका कल्चर नौकरियां करने का रहा है। इसके चलते बिहार जैसे राज्य में उनकी आबादी कम हुई है। इसके अलावा एक वजह यह भी है कि पहली पीढ़ी के पलायन के बाद दूसरी या तीसरी पीढ़ी अपने पैतृक गांव से करीब-करीब नाता ही तोड़ लेती है। इसके चलते भी ग्रामीण इलाकों में सवर्ण कम हो रहे हैं।