Hindi Newsदेश न्यूज़Sheikh Hasina can go to court to fight extradition request from Bangladesh interim govt Ex Indian envoy to Bangladesh

प्रत्यर्पण की मांग के खिलाफ शेख हसीना के पास क्या-क्या उपाय, बांग्लादेश के पूर्व राजदूत ने बताया

भारत और बांग्लादेश ने प्रत्यर्पण संधि पर 2013 में हस्ताक्षर किए थे। 2016 में इसमें संशोधन किया गया था। यह एक रणनीतिक उपाय है जिसका उद्देश्य दोनों देशों की साझा सीमाओं पर उग्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे को सुलझाना है।

Pramod Praveen एएनआई, नई दिल्लीTue, 24 Dec 2024 09:06 AM
share Share
Follow Us on

बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को न केवल अपने देश में बल्कि भारत में भी सुर्खियों में ला दिया है। मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक डिप्लोमैटिक वर्बल नोट के जरिए भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। हालांकि, नई दिल्ली ने फिलहाल इस पर कोई जवाब नहीं दिया है। इस बीच, बांग्लादेश में भारत के राजदूत रहे महेश सचदेव ने सोमवार को इस बात पर प्रकाश डाला कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना प्रत्यर्पण अनुरोधों के खिलाफ क्या उपाय अपना सकती हैं।

समाचार एजेंसी ANI से सचदेव ने कहा कि शेख हसीना प्रत्यर्पण की मांग के खिलाफ अदालत जा सकती हैं। इसके अलावा सचदेव ने कहा कि जिस तरह भारत के प्रत्यर्पण अनुरोधों को अन्य यूरोपीय देशों ने विभिन्न चेतावनियों पर खारिज कर दिया था, उसी तरह शेख हसीना भी कह सकती हैं कि उन्हें अपनी सरकार पर भरोसा नहीं है और उनके साथ अनुचित व्यवहार होने की संभावना है। सचदेव ने बताया कि इसके अलावा भारत भी राजनीतिक कारणों से प्रत्यर्पण को खारिज कर सकता है।

पूर्व राजदूत महेश सचदेव ने कहा, "यह बात सही है कि बांग्लादेश के साथ हमारी प्रत्यर्पण संधि है लेकिन नोट वर्बल दो सरकारों के बीच संचार का सबसे निचला स्तर है। अगर बांग्लादेश सरकार को इस मामले में गंभीरता दिखानी है तो उच्च-स्तरीय नोट भेजने होंगे। दूसरा, भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि में कई चेतावनियां हैं, जो राजनीतिक मुद्दों के मामले में प्रत्यर्पण को खारिज करती हैं। इसमें आपराधिक मुद्दों को राजनीतिक विचारों से बाहर रखा गया है।"

उन्होंने बताया कि 2013 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि में 'राजनीतिक अपराध अपवाद' का एक प्रावधान शामिल है, जिसके तहत इस संधि के अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि ऐसा प्रत्यर्पण अनुरोध अस्वीकार किया जा सकता है, जो राजनीतिक प्रकृति का अपराध हो। इसके अलावा इसी संधि के अनुच्छेद 8 में प्रत्यर्पण से इनकार करने के आधारों की एक सूची भी दी गई है, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को भारत उस स्थिति में भी प्रत्यर्पित नहीं कर सकता है जब उसे ये आभास हो कि प्रत्यर्पण किए जाने वाले के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायसंगत नहीं लग रहे हों और उसमें सियासी साजिश नजर आ रही हो।

ये भी पढ़ें:शेख हसीना को सौंपने की मांग पर भारत ने नहीं खोले पत्ते, जानें क्या है विकल्प
ये भी पढ़ें:दिल्ली के स्कूल भी करेंगे अवैध बांग्लादेशियों की पहचान, शिक्षा निदेशालय का आदेश
ये भी पढ़ें:शेख हसीना और बेटे पर बांग्लादेश में करप्शन का भी केस, भारत से जोड़ रहे कनेक्शन
ये भी पढ़ें:दुबई होते हुए पाक से आ रहा सामान, पर भारत से नहीं; बांग्लादेश में बढ़ रही नफरत

सचदेवा ने जोर देकर कहा कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना प्रत्यर्पण अनुरोध के खिलाफ अदालत जा सकती हैं और कह सकती हैं कि उनके साथ अनुचित व्यवहार किए जाने की संभावना है। भारत ऐसे उदाहरणों का हवाला भी दे सकता है कि हमें यकीन नहीं है कि उनके साथ न्याय प्रणाली द्वारा उचित व्यवहार किया जाएगा या नहीं। आपको याद होगा कि यूरोप से भारत में आतंकवादियों का प्रत्यर्पण किया गया था, जिसे इसलिए रोक दिया गया था क्योंकि भारतीय न्यायिक प्रणाली, भारतीय जेलों को यूरोप के मानकों के अनुरूप नहीं माना गया था। माल्या ने अपने प्रत्यर्पण के खिलाफ लड़ने के लिए भी इन तर्कों का इस्तेमाल किया है। इसलिए ये सभी चीजें संभवतः सफल होंगी और यह एक लंबा मामला हो सकता है।

भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि पर 2013 में हस्ताक्षर किए गए थे और 2016 में इसमें संशोधन किया गया था। यह एक रणनीतिक उपाय है जिसका उद्देश्य दोनों देशों की साझा सीमाओं पर उग्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे को सुलझाना है। हालांकि, भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत अपराध राजनीतिक प्रकृति का होने पर प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। सचदेव ने कहा कि शेख हसीना का मामला इसलिए उलझा हुआ है क्योंकि प्रत्यर्पण का अनुरोध आधिकारिक था और उनके लिए शरण का अनुरोध भी आधिकारिक था।

अगला लेखऐप पर पढ़ें