LAC पर समझौते ने दूसरे रास्ते भी खोले; सीमा विवाद पर जयशंकर, यूक्रेन और इजरायल पर भी बोले
- विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एलएसी पर भारतीय और चीनी सैनिकों की वापसी पर कहा कि यह कदम स्वागत योग्य है और इस समझौते ने और रास्ते खोल दिए हैं। जयशंकर ने रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध पर भी बात की।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय और चीनी सैनिकों की वापसी पर कहा कि यह कदम स्वागत योग्य है। उन्होंने आगे कहा कि इस कदम ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए अन्य रास्तों को भी खोल दिए हैं। ऑस्ट्रेलियाई शहर ब्रिस्बेन में भारतीय समुदाय के लोगों से बातचीत में जयशंकर ने यूरोप और पश्चिम एशिया में चल रही भीषण जंग पर भी बात की। उन्होंने कहा कि भारत कूटनीति के जरिए यूक्रेन-रूस और इजरायल-हमास संघर्ष को रोकने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस कोशिश में और देशों को आगे आना चाहिए, क्योंकि युद्ध ने ग्लोबल वर्ल्ड के 125 देशों के संकट और दर्द को बढ़ा दिया है।
जयशंकर ने कहा कि रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध के व्यापक परिणामों ने चिंता बढ़ा दी है। हम अलग-अलग कोशिशों में इस युद्ध को समाप्त करने के प्रयास में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे, क्योंकि इस महायुद्ध ने 125 देशों के लिए संकट और दर्द बढ़ा दिया है। इस महायुद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लगातार प्रयास कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि पीएम मोदी ने जुलाई में रूस और अगस्त में यूक्रेन की यात्रा की थी।
पीएम मोदी ने जून में और फिर सितंबर में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की से भी मुलाकात की और अक्टूबर में रूसी शहर कज़ान में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले। दोनों नेताओं से मुलाकात में पीएम मोदी ने युद्ध रोकने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी स्थिति है, जिसके लिए कुछ हद तक कूटनीति की आवश्यकता है और हम ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं।
बाकी देश भी आगे आएं
उन्होंने आगे कहा, "हमें लगता है कि बाकी दुनिया को भी इस युद्ध को रोकने के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें अपने हाथ यह कहकर खड़े नहीं करने चाहिए कि यह नहीं हो पाएगा। हम दुनिया के बाकी देशो से भी आह्वान करते हैं कि आइए इसे मिलकर रोके। जयशंकर ने स्वीकार किया कि जब भारत ने अपने प्रयास शुरू किए थे तो दुनिया के बाकी देशों को संदेह था कि भारत कुछ कर पाएगा, लेकिन आज उन देशों में एक समझ विकसित हो गई है, खासकर पश्चिमी देशों के बीच।
इजरायल युद्ध पर क्या बोले जयशंकर
जयशंकर ने आगे इजरायल के साथ हमास, ईरान और लेबनान युद्ध पर भी बात की। उन्होंने कहा कि पश्चिम एशिया में स्थिति अलग है, क्योंकि फिलहाल प्रयास इज़राइल-हमास युद्ध को रोकने पर केंद्रित हैं। यहां एक सबसे बड़ी कमी ईरान और इज़रायल का एक-दूसरे से सीधा संवाद न हो पाना है। यदि वे उस अंतर को कम कर देते हैं या हटा देते हैं, तो हम युद्ध रोकने के प्रयास करने वालों में एक होंगे।
एलएसी पर समझौतों ने और रास्ते खोले
जयशंकर ने कहा, "एलएसी में चीन की सेनाओं के पीछे हटने से आपसी संबंधों में कुछ प्रगति हुई। अब सेनाओं के पीछे हटने के बाद यह देखना होगा कि हम किस दिशा में जाते हैं। लेकिन हमारा मानना है कि पीछे हटना एक स्वागत योग्य कदम है, इससे आगे की संभावना खुल जाती है कि अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं।'' जयशंकर ने कहा कि सैनिकों की वापसी केवल "एक मुद्दे का सुलझना" है और अभी गतिरोध के अन्य पहलू भी हैं, जिन्हें अभी भी सुलझाना बाकी है।
उन्होंने कहा कि, “सच्चाई यह है कि एलएसी पर बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक तैनात थे, जो 2020 से पहले वहां नहीं थे और हमने बदले में जवाबी तैनाती की। गतिरोध के दौरान भारत और चीन ने एलएसी के लद्दाख सेक्टर में 50000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया था, जिससे द्विपक्षीय संबंध 1962 के सीमा युद्ध के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे। भारत ने चीन के खिलाफ कई अन्य सख्त कदम भी उठाए थे, जिनमें चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना और चीनी नागरिकों के लिए वीज़ा और चीनी पक्ष से निवेश को प्रतिबंधित या कम करना शामिल था।