‘फरिश्ता, दया का समंदर थे रतन टाटा’; 26/11 हमले में यूं मदद कर जीत लिया था पीड़ितों का दिल
रतन टाटा ने मारे गए होटल कर्मियों के आश्रितों और रिश्तेदारों को उनके जीवन भर के लिए मिलने वाले वेतन का भुगतान किया था। इतना ही नहीं आतंकी हमले के कुछ ही महीनों के भीतर, टाटा समूह ने आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए ताज पब्लिक सर्विस वेलफेयर ट्रस्ट का भी गठन किया।
प्रतिष्ठित उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में बीती रात उनका निधन हो गया। वह 86 साल के थे। पिछले कुछ समय से वह बीमार चल रहे थे। उनके निधन से उद्योग जगत में शोक की लहर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देशभर की बड़ी हस्तियों ने रतन टाटा के निधन पर दुख जताया है और इसे सभी भारतीयों के लिए एक बड़ी क्षति बताया है। रतन टाटा बहुत ही दृढ़ संकल्पित और दयालु स्वभाव के इंसान थे। जब 2008 में मुंबई पर आतंकियों ने हमला कर दिया था, तब ताज होटल पर हमले के दौरान रतन टाटा ने जबरदस्त संकल्प दिखाया था।
जब सुरक्षाकर्मी इस प्रतिष्ठित होटल में आतंकियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चला रहे थे, तब उस समय 70 वर्षीय रतन टाटा ने जबरदस्त संकल्प दिखाया था। वह पल-पल की खबर ले रहे थे। इस हमले में मारे गए 166 लोगों में से 33 लोग टाटा समूह के प्रतिष्ठित ताज होटल में 60 घंटे की घेराबंदी में मारे गए थे। इनमें 11 होटल के कर्मचारी थे। हमले के बाद, रतन टाटा ने ताज होटल को ना सिर्फ तुरंत फिर से खोलने का संकल्प लिया बल्कि हमले में मारे गए या घायल हुए लोगों के परिवारों की देखभाल करने का भी संकल्प लिया था।
बीबीसी के अनुसार, रतन टाटा ने मारे गए होटल कर्मियों के आश्रितों और रिश्तेदारों को उनके जीवन भर के लिए मिलने वाले वेतन का भुगतान किया था। इतना ही नहीं आतंकी हमले के कुछ ही महीनों के भीतर, टाटा समूह ने आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए ताज पब्लिक सर्विस वेलफेयर ट्रस्ट (TPSWT) का भी गठन किया। डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तब रतन टाटा खुद पीड़ितों के घर पहुंचे थे और यह सुनिश्चित किया था कि उनकी देखभाल की जा रही है या नहीं।
टाटा डॉट कॉम के मुताबिक, 26/11 हमले के एक पीड़ित मनोज ठाकुर ने रतन टाटा की दरियादिली का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी आंखों में दया का समंदर है। उन्होंने हमें जो आश्वासन दिया था, वह सिर्फ़ कोई वादा नहीं था। उन्होंने उसे निभाया। वह अपने वचन के पक्के थे। ठाकुर ने कहा, “सच कहूँ तो वह एक फरिश्ते की तरह हैं… उन्होंने सिर्फ़ मेरी ही नहीं, बहुत सी जिंदगियां बदल दी हैं।” मनोज ठाकुर 26/11 के आतंकवादी हमले में लियोपोल्ड कैफ़े के बाहर घायल हो गए थे। रतन टाटा ने न सिर्फ होटल ताज के कर्मचारियों और उनके परिजनों की चिंता की बल्कि उस होटल के बाहर भी जो लोग इस आतंकी घटना में घायल हो गए थे, उनकी भी हर तरह से मदद की थी।