अब सिद्धारमैया ने अमित शाह से मांग ली एक गारंटी, कहा- दक्षिण के 5 राज्यों का डर तभी खत्म होगा
- एमके स्टालिन की ओर से जाहिर की गई चिंताओं पर जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा था कि दक्षिण भारत के किसी भी राज्य को सीटों का नुकसान नहीं होगा। इसी पर अब सिद्धारमैया ने मांग की है कि 1971 की जनगणना के आधार पर ही लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाए।
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लोकसभा सीटों का परिसीमन होने के बाद तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक समेत दक्षिण भारत के राज्यों की सीटें कम होने की आशंका जाहिर की जा रही है। इसे लेकर राजनीति तेज है और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने तो राज्य के सभी दलों की मीटिंग बुलाई है। यही नहीं अब यह मसला जोर पकड़ता जा रहा है और कर्नाटक के सीएम एम. सिद्धारमैया ने भी इसे लेकर केंद्र से गारंटी मांगी है। उन्होंने होम मिनिस्टर अमित शाह की उस बात को लेकर भी जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि तमिलनाडु या फिर दक्षिण के किसी अन्य राज्य की सीटें कम नहीं होंगी। सिद्धारमैया ने कहा कि यदि 2025 की जनगणना के अनुसार ही परिसीमन हुआ तो फिर दक्षिण भारत के 5 राज्यों की सीटें कम हो जाएंगी।
पहले भी जनसंख्या के अनुसार ही परिसीमन होता रहा है और यदि इस बार भी वही फॉर्मूला रहा तो हमें नुकसान होगा। उन्होंने होम मिनिस्टर अमित शाह से एक गारंटी मांगी कि 1971 की जनगणना के आधार पर ही परिसीमन किया जाए। सिद्धारमैया ने कहा, 'यह तथ्य है कि यदि वर्तमान जनसंख्या के अनुसार परिसीमन किया गया तो फिर दक्षिण भारत के राज्यों को नुकसान होगा। इस अन्याय को रोकने के लिए परिसीमन 1971 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार ही होना चाहिए।' उन्होंने कहा कि यदि होम मिनिस्टर अमित शाह कहें कि 1971 के आंकड़ों का ही प्रयोग किया जाएगा तो माना जा सकता है कि दक्षिण भारत के राज्यों को नुकसान नहीं होगा।
दरअसल एमके स्टालिन की ओर से जाहिर की गई चिंताओं पर जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा था कि दक्षिण भारत के किसी भी राज्य को सीटों का नुकसान नहीं होगा। एमके स्टालिन की ओर से यह मुद्दा उठाया गया था और अब आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और कर्नाटक में भी यह जोर पकड़ रहा है। दरअसल ऐसी कई रिपोर्ट्स आ रही हैं, जिसमें दावा किया जा रहा है कि यूपी और बिहार की लोकसभा सीटें बहुत ज्यादा हो सकती हैं। वहीं तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक और केरल की सीटें या तो कम होंगी या फिर जस की तस ही रहेंगी। इसके चलते देश की राजनीति में साउथ का प्रतिनिधित्व कम होने की चिंता भी इन राज्यों को सता रही है। इसी को लेकर एमके स्टालिन से लेकर सिद्धारमैया तक मुद्दा बना रहे हैं।