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राम मंदिर वाले फैसले पर सवाल उठाने वाले जस्टिस नरीमन ने अब EWS आरक्षण को बताया गलत

  • जस्टिस नरीमन ने कहा कि संसद ने आर्टिकल 46 का जिक्र करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की बात कही थी, लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है। यह आर्टिकल आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात ही नहीं करता। इस तरह 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से दिया गया आरक्षण संविधान को ही सिर के बल खड़ा करने जैसा था।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 9 Dec 2024 02:34 PM
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बीते दिनों राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले को संविधान और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ बताने वाले पूर्व जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने अब EWS आरक्षण पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि संसद ने आर्टिकल 46 का जिक्र करते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की बात कही थी, लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है। यह आर्टिकल आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात ही नहीं करता। इस तरह 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से दिया गया आरक्षण संविधान को ही सिर के बल खड़ा करने जैसा था।

उन्होंने जस्टिस कृष्ण अय्यर स्मृति व्याख्यानमाला में कहा कि आरक्षण का विचार सबसे निचले पायदान पर खड़े लोगों तक पहुंचने का रहा है। लेकिन EWS आरक्षण में ऐसा विचार ध्यान में नहीं रखा गया। इसके अलावा उन्होंने इस कोटे को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाया। इस मामले में शीर्ष अदालत की 5 सदस्यीय बेंच ने 3-2 के बहुमत से कोटे को बरकरार रखा था। उन्होंने कहा, 'यह आर्थिक मानदंड वाला फैसला न तो संवैधानिक कानून में और न ही किसी भी तरह के सिद्धांत में सही है। यह वास्तव में अनुच्छेद 46 के विपरीत है। निश्चित रूप से अनुच्छेद 15(1) और 16(1) के विपरीत है, जैसा कि अल्पमत के जज जस्टिस भट ने माना है।'

जस्टिस नरीमन ने कहा कि इस 10 फीसदी आरक्षण के दायरे से एससी, एसटी और ओबीसी को ही बाहर रखा गया है। यह संविधान को ही सिर के बल खड़ा करने जैसा फैसला था। दरअसल इस आरक्षण को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी और यह दलील थी कि 10 फीसदी EWS कोटा 50 पर्सेंट की लिमिट को पार करता है, जिसे खुद सुप्रीम कोर्ट ने ही तय किया था। लेकिन 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने आरक्षण यह करते हुए बरकरार रखा था कि केवल आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण पर 50% की अधिकतम सीमा को पार करना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।

वहीं अल्पमत में रहे 2 अन्य जजों रवींद्र भट और तत्कालीन सीजेआई यूयू ललित ने 50% की अधिकतम सीमा के उल्लंघन और SC/ST/OBC के गरीबों को EWS कोटे से बाहर करने को गलत माना था। उनका कहना था कि 50 फीसदी की लिमिट टूटना सही नहीं है। इसके अलावा सामाजिक तौर पर पिछड़े लोगों को इस आरक्षण के दायरे में न लाना भी गलत है।

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