प्यार और जंग में सब जायज है, शरद पवार का नाम लेकर ऐसा क्यों बोले नितिन गडकरी
- वर्धा जिले के अरवी में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए गडकरी ने कहा कि भाजपा न तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी है और न ही उनकी, बल्कि यह उन कार्यकर्ताओं की पार्टी है जिन्होंने अपना जीवन इसके लिए समर्पित कर दिया है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बीजेपी पर लग रहे पार्टी तोड़ने के आरोपों के बीच दिग्गज नेता शरद पवार का जिक्र किया है। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा कि पवार ने भी अपने समय में ऐसे फैसले लिए थे। कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र में लोकसभा के नतीजे राजनीतिक उथल-पुथल का नतीजा थे। 2022 में शिवसेना के दो हिस्से हुए और 2023 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी बंट गई थी।
एनडीटीवी से बातचीत में गडकरी ने कहा कि प्यार और जंग में सब जायज है। उन्होंने कहा, 'मुख्यमंत्री रहते हुए शरद पवार की अगुवाई वाली एनसीपी ने सभी पार्टियां तोड़ीं...। उन्होंने शिवसेना तोड़ी और छगन भुजबल और अन्य को बाहर लाए, लेकिन राजनीति में ऐसा चलता रहता है। अब यह सही है या गलत यह अलग बात है...। एक कहावत है कि प्यार और जंग में सब जायज है।'
उन्होंने कहा कि पवार महाराष्ट्र के बहुत सम्मानित नेता हैं, लेकिन एक समय था जब उनके फैसलों ने सभी दलों को प्रभावित किया था। जून में संपन्न लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के खाते में राज्य की 48 में से 30 सीटें आई थीं। वहीं, महायुति को 17 पर जीत मिली थी। इनमें से शिवसेना यूबीटी ने 9, एनसीपी एसपी ने 8 और कांग्रेस ने 13 सीटें जीती थीं।
कार्यकर्ताओं की पार्टी है बीजेपी
वर्धा जिले के अरवी में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए गडकरी ने कहा कि भाजपा न तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पार्टी है और न ही उनकी, बल्कि यह उन कार्यकर्ताओं की पार्टी है जिन्होंने अपना जीवन इसके लिए समर्पित कर दिया है। नागपुर से भाजपा के लोकसभा सदस्य गडकरी ने पार्टी कार्यकर्ता के रूप में अपने उस समय को याद किया जब वह राज्य के विदर्भ क्षेत्र के पड़ोसी वर्धा जिले में दो अन्य लोगों के साथ एक ही स्कूटर पर यात्रा करते थे।
कांग्रेस को घेरा
गडकरी ने कहा, ‘भारत के 75 साल के इतिहास में कांग्रेस ने कभी भी देश के ग्रामीण इलाकों के विकास को प्राथमिकता नहीं दी। गांवों में न सड़कें थीं, न पीने का पानी था।’ उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस ने कभी ग्रामीण भारत के विकास के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा। अगर ग्रामीण भारत को प्राथमिकता दी जाती तो किसान आत्महत्या नहीं करते, गांवों में गरीबी नहीं होती।’