मां-बाप CA बनाना चाहते थे, फिर कैसे वकील बन गए जस्टिस संजीव खन्ना? अगले CJI की दिलचस्प कहानी
- न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया।
जस्टिस संजीव खन्ना 11 नवंबर को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हैं। न्यायमूर्ति खन्ना का प्रधान न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल छह महीने से कुछ अधिक होगा और वह 13 मई, 2025 को पदमुक्त होंगे। न्यायमूर्ति खन्ना के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने की पारिवारिक उम्मीदों को पीछे छोड़कर न्यायिक करियर चुना। यह निर्णय उन्होंने अपने चाचा और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एचआर खन्ना से प्रेरित होकर लिया, जिन्होंने संजीव खन्ना के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस संजीव खन्ना ने अपने चाचा को आदर्श मानते हुए उनके सभी फैसले, नोट्स और रजिस्टर संजो कर रखे हैं, और उनके रिटायरमेंट के बाद इनका संग्रह सुप्रीम कोर्ट पुस्तकालय को सौंपने की योजना बनाई है। उन्होंने अपने चाचा से जुड़े कई किस्से याद किए, जिसमें यह भी बताया गया है कि जस्टिस एचआर खन्ना अपने जूते खुद ही पॉलिश करते थे और परिवार के अन्य सदस्यों के जूते भी। वे अपने कपड़े भी खुद धोते थे, जो उनके आत्मनिर्भरता और सादगी का परिचायक है।
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट के अपने पहले दिन जस्टिस संजीव खन्ना उसी कोर्टरूम में बैठे, जहां उनके चाचा ने सेवाएं दी थीं। हालांकि उस कोर्टरूम में जस्टिस एचआर खन्ना की तस्वीर लगी हुई है, परंतु अभी तक जस्टिस संजीव खन्ना ने वहां कोई तस्वीर नहीं खिंचवाई। वे रिटायरमेंट से पहले इस कोर्टरूम में फोटो खिंचवाने की योजना बना रहे हैं। संजय खन्ना के माता-पिता भी अपने समय के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे। उनकी मां सरोज खन्ना लेडी श्रीराम कॉलेज में लेक्चरर थीं, जबकि पिता देवराज खन्ना दिल्ली उच्च न्यायालय में जज थे।
जस्टिस एचआर खन्ना, जिनसे संजीव खन्ना प्रेरित हुए, उन्होंने 1976 में प्रसिद्ध "हैबियस कॉर्पस मामले" (ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद जनवरी 1977 में जब इंदिरा गांधी की सरकार ने जस्टिस एमएच बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया, तो जस्टिस एचआर खन्ना ने विरोध स्वरूप अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनका यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। उन्हें 18 जनवरी, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। उनका जन्म 14 मई, 1960 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘कैम्पस लॉ सेंटर’ से कानून की पढ़ाई की थी।
उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति खन्ना के कुछ महत्वपूर्ण फैसलों में चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के उपयोग को बरकरार रखना शामिल है। वह उन पांच न्यायाधीशों की पीठ का भी हिस्सा थे जिसने राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए बनाई गई चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था। न्यायमूर्ति खन्ना उन पांच न्यायाधीशों की पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने संबंधी केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा था।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाला मामले में आरोपी दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी थी। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष है जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की उम्र में पद मुक्त हो जाते हैं। केंद्र सरकार ने हाल में प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ से उनके उत्तराधिकारी का नाम बताने को कहा था।