संविधान निर्माता नहीं हैं भागवत; रामलला की प्रतिष्ठा से आजादी वाले बयान पर उद्धव सेना भी भड़की
- संजय राउत ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को ही असली आजादी कहने वाले मोहन भागवत के बयान पर कहा कि ऐसा कहना गलत है। असल बात तो यह है कि हजारों लाखों साल से भगवान राम हमारे दिलों में हैं। हम लोगों ने रामलला के लिए पहले भी लड़ाई लड़ी है और जरूरत हुई तो आगे भी ऐसा करेंगे।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी उद्धव सेना ने ही निशाना साधा है। संजय राउत ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को ही असली आजादी कहने वाले मोहन भागवत के बयान पर कहा कि ऐसा कहना गलत है। असल बात तो यह है कि हजारों लाखों साल से भगवान राम हमारे दिलों में हैं। हम लोगों ने रामलला के लिए पहले भी लड़ाई लड़ी है और जरूरत हुई तो आगे भी ऐसा करेंगे। उन्होंने कहा कि असली आजादी तो देश को तब मिलेगी, जब रामलला के नाम पर राजनीति बंद होगी। यही नहीं उन्होंने मोहन भागवत को लेकर यह भी कहा कि वह महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, लेकिन कानून तय करने वाले नहीं हैं। संजय राउत का यह बयान अहम है क्योंकि आमतौर पर शिवसेना के लोग आरएसएस के खिलाफ बोलने से बचते रहे हैं।
राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा, 'आरएसएस के सरसंघचालक एक सम्माननीय व्यक्ति हैं। वह संविधान के निर्माता नहीं है और न ही वह देश के कानून बनाएंगे और न बदलेंगे। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा गर्व की बात है। इसमें सभी का योगदान है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को ही असली स्वतंत्रता बताना गलत बात है। भगवान राम का इस देश में लाखों साल से स्थान रहा है। उन्हें रामलला के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। रामलला के लिए पहले भी हमने आंदोलन किए हैं और करते रहेंगे। लेकिन आप रामलला के नाम पर राजनीति न करें, तभी देश सही मायनों में स्वतंत्र होगा।' बता दें कि मोहन भागवत के बयान को लेकर कुछ और लोगों ने भी ऐतराज जताया है।
मोहन भागवत ने एक आयोजन के दौरान सोमवार को कहा था कि भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा जब अयोध्या में हुई तो यह देश के लिए असली आजादी मिलने जैसा था। मोहन भागवत ने कहा था, 'अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी।' हिंदू पंचांग के मुताबिक, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पिछले साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुई थी। तब ग्रेगोरियन कैलेंडर में 22 जनवरी 2024 की तारीख थी। इस साल पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी की तिथि 11 जनवरी को पड़ी।उन्होंने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ के दो दिन बाद कहा था कि यह तिथि ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से ‘‘परचक्र’’ (दुश्मन का आक्रमण) झेलने वाले भारत की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी।
भागवत ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से ‘राजनीतिक स्वतंत्रता’ मिलने के बाद उस विशिष्ट दृष्टि की दिखाई राह के मुताबिक लिखित संविधान बनाया गया। जो देश के ‘स्व’ से निकलती है, लेकिन यह संविधान उस वक्त इस दृष्टि भाव के अनुसार नहीं चला। उन्होंने कहा कि भगवान राम, कृष्ण और शिव के प्रस्तुत आदर्श और जीवन मूल्य ‘भारत के स्व’ में शामिल हैं और ऐसी बात कतई नहीं है कि ये केवल उन्हीं लोगों के देवता हैं, जो उनकी पूजा करते हैं।
भागवत ने कहा कि आक्रांताओं ने देश के मंदिरों के विध्वंस इसलिए किए थे कि भारत का ‘स्व’ मर जाए। भागवत ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन किसी व्यक्ति का विरोध करने या विवाद पैदा करने के लिए शुरू नहीं किया गया था। संघ प्रमुख ने कहा कि यह आंदोलन भारत का ‘स्व’ जागृत करने के लिए शुरू किया गया था ताकि देश अपने पैरों पर खड़ा होकर दुनिया को रास्ता दिखा सके। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन इसलिए इतना लम्बा चला क्योंकि कुछ शक्तियां चाहती थीं कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर उनका मंदिर न बने।