‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी’, किस आरोप के जवाब में मनमोहन सिंह ने पढ़ा था यह शेर
- पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया। मनमोहन सिंह अपने आर्थिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं। वहीं, उनकी हाजिर जवाबी के भी तमाम किस्से मशहूर हैं। ऐसा ही एक वाकया 27 अगस्त 2012 का है।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निधन हो गया। मनमोहन सिंह अपने आर्थिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं। वहीं, उनकी हाजिर जवाबी के भी तमाम किस्से मशहूर हैं। ऐसा ही एक वाकया 27 अगस्त 2012 का है। तब मनमोहन सरकार पर कोयला ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोप थे। इसको लेकर कैग रिपोर्ट में भी अनियमितताओं के आरोप लगे थे। इन आरोपों पर मनमोहन सिंह का कहना था कि यह बेबुनियाद हैं। मनमोहन सिंह की खामोशी को लेकर उनके ऊपर विपक्ष हमलावर था। इसको लेकर संसद भवन के बाहर मीडिया से बात करते हुए मनमोहन सिंह ने उस वक्त एक शेर सुनाया था। उन्होंने कहा था, ‘हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी’
अपने आर्थिक सुधारों के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने वाले पूर्व वित्त मंत्री और दो बार प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। जब सिंह ने 1991 में पी वी नरसिम्ह राव की सरकार में वित्त मंत्रालय की बागडोर संभाली थी, तब भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 8.5 प्रतिशत के करीब था। भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा भी जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के आसपास था। इसके अलावा देश के पास जरूरी आयात के भुगतान के लिए भी केवल दो सप्ताह लायक विदेशी मुद्रा ही मौजूद थी। इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था बहुत गहरे संकट में थी।
ऐसी परिस्थिति में डॉ सिंह ने केंद्रीय बजट 1991-92 के माध्यम से देश में नए आर्थिक युग की शुरुआत कर दी। यह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें साहसिक आर्थिक सुधार, लाइसेंस राज का खात्मा और कई क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी कंपनियों के लिए खोलने जैसे कदम शामिल थे। इन सभी उपायों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का था। भारत को नई आर्थिक नीति की राह पर लाने का श्रेय डॉ सिंह को दिया जाता है। उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), रुपये के अवमूल्यन, करों में कटौती और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देकर एक नई शुरुआत की।
मई 2004 में मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। अगले 10 साल तक उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों और सुधारों को मार्गदर्शन देने का काम किया। उनके कार्यकाल में ही 2007 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर नौ प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंची और दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया। वह 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) लेकर आए और बिक्री कर की जगह मूल्य वर्धित कर (वैट) लागू हुआ।