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Manmohan Singh: एक फोन कॉल ने बदल दी भारत की तकदीर, मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने की कहानी

  • मनमोहन सिंह और पीवी नरसिम्हा राव की जोड़ी ने भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दिलाई और 1991 के सुधारों ने भारत को एक नई आर्थिक ताकत के रूप में उभारा।

Himanshu Jha लाइव हिन्दुस्तानFri, 27 Dec 2024 06:04 AM
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Manmohan Singh Demise: जून 1991 की बात है। मनमोहन सिंह ने नीदरलैंड्स में एक सम्मेलन में भाग लेकर दिल्ली वापस लौटे थे। रात को आराम करने चले गए थे। उसी रात उनके दामाद विजय तनखा को एक फोन कॉल आया। कॉल पर पीसी एलेक्जेंडर थे, जो पीवी नरसिम्हा राव के करीबी सहयोगी थे। एलेक्जेंडर ने मनमोहन सिंह के दामाद से आग्रह किया कि वह उन्हें जगाएं। मनमोहन सिंह ने उस फोन कॉल को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन कुछ ही घंटों के बाद दोनों की मुलाकात होती है।

21 जून 1991 को मनमोहन सिंह अपने यूजीसी कार्यालय में थे। तभी उन्हें यह सूचना दी गई कि वे घर जाएं, कपड़े बदलें और बतौर वित्त मंत्री शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए आ जाएं। मनमोहन सिंह ने अपनी आत्मकथा "Strictly Personal, Manmohan & Gursharan" में इस घटना का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा, “सब लोग चौंक गए जब मुझे नई सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल होते हुए देखा। बाद में मेरी मंत्रालय की जिम्मेदारी तय हुई, लेकिन नरसिंह राव जी ने मुझे सीधे बताया कि मैं वित्त मंत्री बनने जा रहा हूं।"

यह नियुक्ति भारत की अर्थव्यवस्था के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। यह वह समय था जब भारत की अर्थव्यवस्था संकट में थी। विदेशी मुद्रा भंडार 2500 करोड़ रुपये के आसपास गिर चुका था। वर्ल्ड बैंक ऋण देने से इंकार कर रहे थे और महंगाई भी रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुकी थी।

मनमोहन सिंह ने इस कठिन समय को चुनौती के रूप में लिया और इससे निपटने के उपाय भी पहले से सोच रखे थे। उनके द्वारा प्रस्तुत बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव के नेतृत्व में 1991 में भारत ने लाइसेंस राज को अलविदा कहा और मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया।

मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों के लिए कदम उठाते हुए मुद्रा मुद्रास्फीति में कमी के साथ-साथ निर्यात नियंत्रणों को भी हटा दिया। उनके द्वारा किए गए सुधारों के परिणामस्वरूप भारत के विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खुले और कई क्षेत्रों में सरकारी एकाधिकार का अंत हुआ। इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों का निजीकरण भी शुरू किया गया।

24 जुलाई 1991 को मनमोहन सिंह ने अपना पहला बजट पेश किया। इस बजट में भारतीय कंपनियों के लिए धन जुटाने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए सेबी की स्थापना की गई। वित्तीय क्षेत्र के लिए एक नई समिति गठित की गई, जो आने वाले वर्षों में आर्थिक सुधारों के ढांचे को आकार देने में सहायक साबित हुई। इस बजट ने सरकारी खर्चों में कटौती करने और वित्तीय अनुशासन को लागू करने पर जोर दिया।

मनमोहन सिंह और पीवी नरसिम्हा राव की जोड़ी ने भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दिलाई और 1991 के सुधारों ने भारत को एक नई आर्थिक ताकत के रूप में उभारा।

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