क्या है कल्पवास? महाकुंभ में साध्वी बनकर रहेंगी दिवंगत स्टीव जॉब्स की पत्नी, दो सप्ताह का तप
- दिवंगत स्टीव जॉब्स की पत्नी पॉवेल साध्वी बनकर महाकुंभ में दो सप्ताह तक तप करेंगी। वो निरंजनी अखाड़े में कल्पवास करेंगी। क्या होता है कल्पवास, जानें इसके नियम और महत्ता…
एप्पल के सह-संस्थापक दिवंगत स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल जॉब्स 13 जनवरी से यूपी के प्रयागराज में शुरू होने वाले महाकुंभ मेले में हिस्सा लेंगी। हर 12 साल में लगने वाले हिंदुओं के इस पवित्र मेले में पॉवेल साध्वी बनकर महाकुंभ में दो सप्ताह तक तप करेंगी। वो कल्पवास में समय बिताएंगी। कल्पवास बेहद पुरानी हिंदू परंपरा है, जिसका महाकुंभ जैसे महामेले में महत्व अधिक हो जाता है। इसका जिक्र वेद-पुराणों में भी मिलता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, पॉवेल निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद के शिविर में रहेंगी। उनसे विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लेने और संगम में पवित्र डुबकी लगाने की उम्मीद है, जिससे वे महाकुंभ के आध्यात्मिक सार को पूरी तरह से आत्मसात कर सकेंगी। उनका प्रवास 29 जनवरी तक चलेगा।
क्या होता है कल्पवास
ऐसा कहा जाता है कि कल्पवास करने से मन माफिक इच्छा का फल मिलता है। इससे जन्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। संगम पर माघ के पूरे महीने साधना को कल्पवास कहा जाता है। महाभारत के अनुसार, 9 साल तक बिना कुछ खाए-पीए तपस्या करने के फल के बराबर माघ मास के कल्पवास जितना फल प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, कल्पवास की सबसे कम अवधि एक रात्रि की हो सकती है और कई लोग कल्पवास तीन रात, तीन महीना, छह महीने, 12 साल और जीवनभर पर करते हैं।
कल्पवास के नियम क्या हैं
कल्पवास करना आसान नहीं। कल्पवास के दौरान कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है- जिसमें सच बोलना, अहिंसा, इंद्रियों पर नियंत्रण करना, सभी प्राणियों पर दयाभाव दिखाना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, सभी व्यसनों का त्याग, ब्रह्म मुहूर्त में उठना, रोज तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना, पितरों का पिंडदान, दान करना, जप, संकल्पित क्षेत्र से बाहर न निकलना, किसी की भी निंदा न करना, साधुओं की सेवा करना, एक समय भोजन, जमीन पर सोना, अग्नि सेवन और आखिर में देव पूजन शामिल है।
हर बारह साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक समारोहों में से एक है। इसमें दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु, संत और साधक आते हैं। माना जाता है कि संगम के पानी में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है और आध्यात्मिक आशीर्वाद मिलता है। इस साल महाकुंभ में लाखों भक्तों के पहुंचने की उम्मीद है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवों और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था। मंथन के दौरान विष भी निकला और अमृत भी। ऐसा माना जाता है कि अमृत की कुछ बूंदे धरती के चार हिस्सों पर गिरीं। इसके बाद ये स्थान पवित्र हो गए। इन स्थानों पर हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है।