मुस्लिमों के खिलाफ बोले अपशब्द, 'कठमुल्ला' वाले बयान पर बुरे फंसे जस्टिस शेखर यादव; CJI खन्ना से शिकायत
- रिपोर्ट के मुताबिक, पत्र में यह भी कहा गया है कि न्यायमूर्ति यादव का यह आचरण संविधान के अनुच्छेद 12, 21, 25 और 26 के साथ-साथ प्रस्तावना का उल्लंघन करता है।
न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को पत्र लिखकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव के खिलाफ 'इन-हाउस जांच' की मांग की है। यह मांग न्यायमूर्ति यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में दिए गए विवादास्पद भाषण के बाद उठी है। सीजेएआर ने अपने पत्र में कहा कि इस घटना ने आम नागरिकों के मन में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर संदेह पैदा कर दिया है। CJAR ने कहा, "न्यायमूर्ति यादव द्वारा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपमानजनक और अस्वीकार्य शब्दों का प्रयोग उच्च न्यायालय के उच्च पद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।"
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्र में यह भी कहा गया है कि न्यायमूर्ति यादव का यह आचरण संविधान के अनुच्छेद 12, 21, 25 और 26 के साथ-साथ प्रस्तावना का उल्लंघन करता है। इसने कहा, "उनका इस तरह के दक्षिणपंथी कार्यक्रम में भाग लेना और समुदाय विशेष के खिलाफ टिप्पणी करना न केवल संविधान की धर्मनिरपेक्षता की भावना के खिलाफ है, बल्कि कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है।" फिलहाल तमाम शिकायतों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए भाषण की समाचार पत्रों में छपी खबरों पर संज्ञान लिया है। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से इस संबंध में पूरा विवरण मंगवाया है तथा मामला विचाराधीन है।
'न्यायिक जीवन के मूल्यों' का उल्लंघन
सीजेएआर ने अपने पत्र में बताया कि न्यायमूर्ति यादव का आचरण सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1997 में अपनाए गए 'न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्व्याख्यान' के खिलाफ है। इसमें कई अहम बातों का जिक्र किया गया है। जैसे-
"न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि होते हुए भी दिखना चाहिए। उच्च न्यायपालिका के सदस्यों का आचरण लोगों के न्यायपालिका में विश्वास को मजबूत करने के लिए होना चाहिए।"
"न्यायाधीश को अपने पद की गरिमा के अनुरूप काम करना चाहिए।"
"न्यायाधीश को सार्वजनिक रूप से राजनीतिक मुद्दों या ऐसे मामलों पर अपनी राय नहीं देनी चाहिए, जो उनके समक्ष आ सकते हैं।"
"हर न्यायाधीश को हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जनता की नजरों में है और ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जो उनके उच्च पद की गरिमा को कम करे।"
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने अपने भाषण में 'कठमुल्ला' शब्द का भी प्रयोग किया था। उनका कहना था, 'लेकिन यह जो कठमुल्ला हैं, यह सही शब्द नहीं है। लेकिन कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वह देश के लिए बुरा है। देश के लिए घातक है, खिलाफ है। जनता को भड़काने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े, इस प्रकार के लोग हैं। उनसे सावधान रहने की जरूरत है।' यही नहीं उन्होंने सांस्कृतिक अंतर की बात करते हुए कहा था कि हमारी संस्कृति में बच्चे वैदिक मंत्र और अहिंसा की सीख के साथ बड़े होते हैं। लेकिन कुछ अलग संस्कृति में बच्चे पशुओं के कत्लेआम को देखते हुए बड़े होते हैं। इससे उनके अंदर दया और सहिष्णुता का भाव ही नहीं रहता।
न्यायिक कार्य से हटाने की मांग
सीजेएआर ने अपने पत्र में न्यायमूर्ति यादव के न्यायिक कार्य को तत्काल प्रभाव से रोकने की मांग की है। इसने कहा, "न्यायमूर्ति यादव की टिप्पणियां उनकी निष्पक्षता और तटस्थता पर गंभीर प्रश्न उठाती हैं। ऐसी स्थिति में, इन-हाउस जांच पूरी होने तक उनके न्यायिक कार्य को निलंबित करना आवश्यक है।" मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में शीघ्र और सख्त कार्रवाई करने की मांग की गई है। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस विवादास्पद मामले में क्या कदम उठाता है।
एनजीओ ने सीजेआई को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति शेखर यादव की टिप्पणी के लिए ‘विभागीय जांच’ की मांग की
इससे पहले वकील और एनजीओ ‘कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स’ के संयोजक प्रशांत भूषण ने मंगलवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को एक पत्र लिखकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव के आचरण की ‘‘विभागीय जांच’’ की अपील की। भूषण ने यह अपील न्यायमूर्ति यादव द्वारा विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में की गई टिप्पणी के मद्देनजर की है, जिसके बारे में एनजीओ का आरोप है कि यह टिप्पणी न्यायिक नैतिकता तथा निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव ने कहा था कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मुख्य उद्देश्य विभिन्न धर्मों और समुदायों पर आधारित असमान कानून प्रणालियों को समाप्त कर सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है। विहिप द्वारा जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, न्यायमूर्ति शेखर यादव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पुस्तकालय हॉल में रविवार को विहिप के विधि प्रकोष्ठ और उच्च न्यायालय इकाई के प्रांतीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘समानता न्याय और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर आधारित समान नागरिक संहिता भारत में लंबे समय से एक बहस का मुद्दा रही है।”
उन्होंने कहा, ‘‘एक समान नागरिक संहिता, एक ऐसे सामान्य कानून को संदर्भित करती है जो व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, विरासत, तलाक, गोद लेने आदि में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होता है।’’ पत्र में भूषण ने कहा कि न्यायमूर्ति यादव ने यूसीसी का समर्थन करते हुए भाषण दिया और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए विवादास्पद टिप्पणी की। पत्र में कहा गया कि न्यायमूर्ति यादव का विहिप के कार्यक्रम में भाग लेना और उनकी टिप्पणियां संविधान की निष्पक्षता को बनाए रखने की शपथ का उल्लंघन करती हैं।