हरियाणा के नतीजों से अस्तित्व के संकट में इनेलो, छिन सकता है सिंबल; एक और मुश्किल
- ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी के आगे इस बार बड़ा संकट खड़ा हो गया है। उसे इस बार के चुनाव में 4.14 फीसदी वोट ही मिले हैं और महज दो सीटों पर ही पार्टी को जीत मिली है। ये सीटें हैं डबवाली और रानियां। डबवाली से आदित्य देवीलाल को जीत मिली है, जबकि रानियां से अर्जुन चौटाला जीते हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक पंडितों के साथ ही दलों को भी चौंकाया है। भाजपा ने अप्रत्याशित तरीके से इस चुनाव को जीता है तो वहीं कई राजनीतिक दलों के आगे बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। राज्य की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से उसका इलेक्शन सिंबल भी छिन सकता है। राज्य के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी के आगे इस बार बड़ा संकट खड़ा हो गया है। उसे इस बार के चुनाव में 4.14 फीसदी वोट ही मिले हैं और महज दो सीटों पर ही पार्टी को जीत मिली है। ये सीटें हैं डबवाली और रानियां। डबवाली से आदित्य देवीलाल को जीत मिली है, जबकि रानियां से अर्जुन चौटाला जीते हैं।
इनेलो को चुनाव में महज 5.75 लाख वोट ही पड़ा है। पार्टी के सीएम कैंडिडेट अभय सिंह चौटाला को भी ऐलनाबाद से हार का सामना करना पड़ा है। अब इसके चलते इनेलो के आगे तो अस्तित्व का संकट ही पैदा हो गया है। दरअसल कानूनी जानकारों के अनुसार इनेलो के लिए यह जरूरी था ति वह राज्य में कम से कम 2 सीट और 6 फीसदी वोट हासिल करती। तभी उसका क्षेत्रीय दल का दर्जा बना रह पाता। उसने इस शर्त को आंशिक तौर पर ही पूरा किया है। इनेलो को किसी तरह दो सीटें तो मिल गई हैं, लेकिन उसका वोट शेयर 6 फीसदी से कम ही रहा है।
इसके अलावा एक शर्त यह रहती है कि भले ही किसी दल को राज्य में 3 फीसदी वोट ही मिलें, लेकिन कम से कम सीटें ही तीन जीतनी चाहिए। इस शर्त को भी इनेलो पूरा नहीं कर पाई है। 2019 के चुनाव में भी इनेलो की यही स्थिति बनी थी। 2019 में तो उसे महज 1 सीट पर ही जीत मिली थी और वोट शेयर भी 2.44 फीसदी ही था। इस तरह अब इनेलो के लिए अपना सिंबल और क्षेत्रीय दल का दर्जा बचाना भी मुश्किल हो गया है। हालांकि इसके बारे में चुनाव आयोग को ही फैसला लेना है, जो आने वाले दिनों कोई निर्णय ले सकता है।
इनेलो को 1998 में क्षेत्रीय दल का दर्जा मिला था, जब उसने 4 लोकसभा सीटें जीती थीं। इनेलो और उससे पहले बनी पार्टी लोकदल कई बार हरियाणा में सत्ताधारी दल या मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुके हैं। लेकिन बीते कई चुनावों से पूर्व पीएम देवीलाल की विरासत वाले ये दल कमजोर हैं। इनेलो से ही निकलकर बनी जेजेपी ने 2019 में 10 सीटें पा ली थीं, लेकिन इस बार तो उसका सूपड़ा ही साफ हो गया। वहीं जेजेपी का क्षेत्रीय दल का दर्जा अभी बना रहेगा। 2019 में उसे 15 फीसदी वोट मिले थे। इस बार उसे 1 फीसदी से भी मत मिले हैं, लेकिन अभी उसे एक चुनाव में और मौका मिलेगा।