Hindi Newsदेश न्यूज़Infosys co founder Narayana Murthy explains why india need 70 hour workweek

यहां 80 करोड़ लोगों को राशन देना पड़ता है… नारायण मूर्ति ने बताया क्यों जरूरी है हफ्ते में 70 घंटे काम

  • दिग्गज उद्योगपति नारायण मूर्ति ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया भी कि हफ्ते में 70 घंटे काम करना क्यों जरूरी है। नारायण मूर्ति ने कहा है कि अगर देश को नंबर 1 पर पहुंचाना है तो यह जरूरी है कि देश के युवा कड़ी मेहनत करें।

Jagriti Kumari लाइव हिन्दुस्तानMon, 16 Dec 2024 09:58 AM
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इंफोसिस के फाउंडर और दिग्गज उद्योगपति नारायण मूर्ति ने कई मौकों पर कहा है युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने ही चाहिए। इसे लेकर कई बार विवाद भी हुए हैं और लोगों ने कहा है कि इससे वर्क लाइफ बैलेंस बुरी तरह प्रभावित होगा। हालांकि नारायण मूर्ति ने एक बार फिर इस विचार का समर्थन किया है। एक कार्यक्रम में कोलकाता पहुंचे नारायण मूर्ति ने कहा है कि युवाओं को यह समझना होगा कि उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी और भारत को नंबर 1 बनाने की दिशा में काम करना होगा।

नारायण मूर्ति कोलकाता में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के शताब्दी समारोह के शुभारंभ के मौके पर कोलकाता पहुंचे थे। कार्यक्रम में आरपीएसजी ग्रुप के चेयरमैन संजीव गोयनका से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “इंफोसिस में मैंने कहा था कि हम अपनी तुलना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों से करेंगे। जब हमने यह तुलना की तो यह पाया कि हम भारतीयों को बहुत कुछ करने की जरूरत है। देश में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिलता है। इसका मतलब है कि 80 करोड़ लोग गरीबी में हैं।

नारायण मूर्ति के मुताबिक कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कार्यक्रम में कहा, "मनुष्य सोच सकता है और अभिव्यक्त कर सकता है। भगवान ने हमें यह क्षमता दी है। यह सुनिश्चित करना है कि बाकी दुनिया भारत का सम्मान करे। मैं चाहता हूं कि युवा यह जानें कि हमारे पास अपने पूर्वजों के सपने को पूरा करने की एक बड़ी जिम्मेदारी है। इसलिए हम सभी को कड़ी मेहनत करनी होगी। हमारे लिए दुखी और गरीब बने रहना बहुत आसान है। इसलिए, मुझे नहीं लगता कि हमें यह कहना चाहिए कि हम अच्छी स्थिति हैं और मैं ऑफिस नहीं जाऊंगा।"

इस कार्यक्रम में नारायण मूर्ति ने उन किस्सों का भी जिक्र किया जिनकी वजह से वह उद्यमी बनने के लिए प्रेरित हुए थे। नारायण मूर्ति ने बताया, “मेरे पिता उस समय देश में हो रहे विकास के बारे में बात करते थे और हम सभी नेहरू और समाजवाद के मुरीद थे। मुझे 70 के दशक की शुरुआत में पेरिस में काम करने का मौका मिला और मैं उलझन में था। पश्चिम में चर्चा हो रही थी कि भारत कितना गंदा और भ्रष्ट है। मेरे देश में गरीबी थी और सड़कों पर गड्ढे थे। उन्होंने आगे कहा, “पश्चिम में हर कोई समृद्ध था और ट्रेनें समय पर चलती थीं और मुझे लगा कि यह गलत नहीं है। उन्होंने आगे कहा, "मुझे एहसास हुआ कि गरीबी से लड़ने का एकमात्र तरीका रोजगार पैदा करना है जिससे खर्च करने लायक आय हो। उद्यमिता में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। मुझे यह भी एहसास हुआ कि उद्यमी रोजगार पैदा करके, अपने निवेशकों के लिए मुनाफा पैदा करके और टैक्स का भुगतान करके राष्ट्र का निर्माण करते हैं।”

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