अब चीन को उसी की भाषा में मिलेगा जवाब, LAC पर तैनात जवानों के लिए भारत की खास तैयारी; क्यों है अहम?
चीन की सीमा पर तैनात जवानों को भारत खास तरीके की ट्रेनिंग दिलवा रहा है। भारत और चीन के बीच संबंधों को देखते हुए इस ट्रेनिंग को काफी अहम माना जा रहा है।
चीन की चालबाजियों का बेहतर ढंग से जवाब देने के लिए भारत भी तैयारी में जुटा हुआ है। इसके तहत सेना के 22 जवानों को चीन की मैंडरिन भाषा की ट्रेनिंग दी गई है। इन जवानों ने गांधीनगर के राष्ट्रीय रक्षा यूनिवर्सिटी (आरआरयू) से पीजी डिप्लोमा कोर्स पूरा किया। जवानों को यह कोर्स भारतीय सेना के खास सहयोग से कराया गया है। यह जवान भारतीय सेना की पूर्वी कमांड में शामिल हैं और चीन के साथ लगी 3,488 किमी लंबी सीमा पर तैनात हैं। चीनी भाषा में दक्ष होने के बाद सीमा पर पड़ोसी देश के साथ फ्लैग मीटिंग्स सैन्य बातचीत में आसानी होगी।
भारतीय सैनिकों का चीनी भाषा में डिप्लोमा बेहद अहम वक्त पर पूरा हुआ है। गौरतलब है कि हालिया ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बातचीत हुई है। इसमें दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने की बात भी कही गई है। दोनों देश सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल करने पर सहमत हुए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक विशेषज्ञों का मानना है अब सीमा पर मैंडरिन भाषा बोलने में दक्ष जवानों की जरूरत और बढ़ेगी। वजह, एलएसी पर शांति और स्थिरता की बहाली में बातचीत काफी अहम भूमिका निभाने वाली है।
आरआरयू के कुलपति प्रोफेसर बिमल पटेल ने कहाकि चीनी भाषा बोलने में कुशल संदेशवाहक कई तरीके से असर डाल सकते हैं। उन्होंने कहाकि इससे सीमा-पार बातचीत में तो आसानी होगी ही, साथ ही यह डिप्लोमेसी में भी बड़ी भूमिका अदा करेगा। उन्होंने कहाकि ऐसे जटिल रिश्तों वाले इलाके में जवानों की लैंग्वेज स्किल कुछ नए रणनीतिक रास्ते खोल सकती है। उन्होंने आगे कहाकि जवानों में इतनी क्षमता है कि वह सीमा पर आपसी सम्मान को काफी बढ़ा सकते हैं। जानकारी के मुताबिक इन जवानों को एंट्रेंस एग्जाम के आधार पर चुना गया है।
गौरतलब है कि भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में डेमचोक और डेपसांग मैदानी क्षेत्रों में टकराव वाले दो बिंदुओं से सैनिकों की वापसी शुरू कर दी है। फिलहाल यह प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में बताई जा रही है। कुछ दिन पहले दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर समझौता हुआ था जो चार साल से अधिक समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है। सूत्रों ने कहा कि सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी होने के बाद टकराव वाले दोनों बिंदुओं पर गश्त शुरू होगी और दोनों पक्ष अपने-अपने सैनिकों को हटाकर अस्थायी ढांचों को नष्ट कर देंगे। उन्होंने कहा कि अंतत: गश्त का स्तर अप्रैल 2020 से पहले के स्तर पर पहुंच सकता है।