एक मीटिंग और 9 महीने का मंथन; कैसे आखिर जाति जनगणना के लिए तैयार हुई मोदी सरकार
सुनील आंबेकर ने प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद स्पष्ट किया था कि हम जाति जनगणना के पक्ष में हैं, लेकिन यह ध्यान रखा जाए कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए न हो। संघ की तरफ से उनका वक्तव्य था कि जाति का विषय बेहद संवेदनशील है। ऐसे में जाति जनगणना को सामाजिक हितों को पूरा करने के लिए किया जाए।

नरेंद्र मोदी सरकार ने बुधवार को जाति जनगणना का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही कई साल से चले आ रहे विपक्षी दलों का बड़ा मुद्दा एक ही झटके में खत्म हो गया। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव समेत कई दलों के नेताओं ने जाति जनगणना को मुद्दा बना रखा था। इन नेताओं का कहना था कि भाजपा ओबीसी, एससी और एसटी विरोधी है और इसीलिए जाति जनगणना नहीं करा रही। अब सरकार ने जब यह फैसला ले लिया है तो उसने बढ़त बनाने की कोशिश की है। बिहार, बंगाल समेत कई राज्यों में चुनाव होने हैं। इसके अलावा 2027 में यूपी में ही चुनाव है। तब तक आंकड़े आएंगे और भाजपा इसके आधार पर चुनाव में भी उतरना चाहेगी।
इससे भी बड़ा सवाल यह है कि अब तक जाति जनगणना के सवाल पर कोई स्पष्ट रुख न अपनाने वाली भाजपा सरकार ने अचानक कैसे यह फैसला लिया। दरअसल भाजपा और संघ के सूत्रों का कहना है कि इसके लिए लंबे समय से मंथन चल रहा था, लेकिन सही वक्त का इंतजार था। भाजपा सरकार और संघ नेतृत्व चाहते थे कि ऐसे वक्त में इसके बारे में फैसला किया जाए, जब विपक्ष की ओर से इसका मुद्दा जोर पर न हो। यानी सरकार और संघ चाहते थे कि यह संदेश न जाए कि विपक्ष के दबाव में ऐसा फैसला हुआ है। यही वजह है कि जब हर किसी की नजर थी कि शायद मोदी सरकार पाकिस्तान के खिलाफ कोई ऐक्शन लेगी तो चौंकाते हुए जाति जनगणना का ऐलान कर दिया गया।
दरअसल आरएसएस ने बीते साल सितंबर की शुरुआत में ही केरल के पलक्कड़ में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में जाति जनगणना का संकेतों में समर्थन किया था। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद स्पष्ट किया था कि हम जाति जनगणना के पक्ष में हैं, लेकिन यह ध्यान रखा जाए कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए न हो। संघ की तरफ से उनका वक्तव्य था कि जाति का विषय बेहद संवेदनशील है। ऐसे में जाति जनगणना को सामाजिक हितों को पूरा करने के लिए किया जाए, लेकिन उसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
जाति जनगणना पर अभी ही क्यों लिया गया फैसला
साफ है कि तब से ही आरएसएस इसके पक्ष में था और इसे लेकर शीर्ष नेतृत्व में मंथन चल रहा था। यही नहीं संघ की राय के बाद भाजपा भी इस राह पर आगे बढ़ती दिखी। माना जा रहा है कि इस पर आखिरी फैसला मोहन भागवत और पीएम नरेंद्र मोदी की करीब दो घंटे तक हुई मीटिंग में हुआ। मंगलवार को हुई इस मीटिंग को लेकर कयास थे कि शायद पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ऐक्शन को लेकर मोहन भागवत कुछ संदेश देने गए हैं। लेकिन जब बुधवार को सरकार ने ऐलान किया तो साफ हो गया कि यह बैठक जाति जनगणना को लेकर हुई थी। दरअसल यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि संघ की कोशिश हिंदू समाज की एकता की रही है। ऐसे में जाति जनगणना के सवाल पर उसका आगे आना महत्वपूर्ण है। फिलहाल सभी की नजर इस बात पर होगी कि जनगणना के आंकड़े आने के बाद राजनीति किस ओर बढ़ती है।