हरियाणा के निकाय चुनाव में भी हार को तैयार कांग्रेस? गुटबाजी के बीच 78 साल के भूपिंदर हुड्डा ही रेस में
- करीब दो दर्जन विधायकों के समर्थन के साथ 78 साल के भूपिंदर सिंह हुड्डा ही नेता विपक्ष बनने का दावा ठोक कर रहे हैं। उनके सामने अब तक कोई दूसरा मजबूत नेता सामने नहीं आया है, लेकिन हाईकमान हुड्डा को फुल पावर देने से बच रहा है। उसे लगता है कि इससे यह संदेश जाएगा कि हुड्डा को हर हाल में समर्थन है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आए दो महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। भाजपा ने सरकार का गठन कर लिया है और अब प्रदेश संगठन में भी तेजी से बदलाव करने में जुटी है। स्थानीय निकाय चुनाव से पहले भाजपा ने सभी जिलों में नया संगठन तैयार करना शुरू कर दिया है। वहीं विधानसभा चुनाव एक फीसदी से भी कम वोट शेयर से हारने वाली कांग्रेस नेता विपक्ष का भी चुनाव नहीं कर सकी है। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष उदयभान को हटाकर नए नेता को कमान देने की चर्चाएं तो खूब हो रही हैं, लेकिन अब तक किसी को मौका नहीं मिला है। वहीं नेता विपक्ष के चयन को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है। बस चुनावी हार के ठीकरे अब तक फोड़े जा रहे हैं।
चुनाव प्रभारी दीपक बाबरिया ने टिकट बंटवारे को जिम्मेदार ठहराया है तो वहीं हुड्डा खेमे के अध्यक्ष उदयभान ने पिछले दिनों साफ कह दिया कि टिकट बंटवारे में तो हरियाणा वालों की चली ही नहीं। सारे फैसले से टिकटों पर दिल्ली से ही लिए गए थे। ऐसी स्थिति में करीब दो दर्जन विधायकों के समर्थन के साथ 78 साल के भूपिंदर सिंह हुड्डा ही नेता विपक्ष बनने का दावा ठोक कर रहे हैं। उनके सामने अब तक कोई दूसरा मजबूत नेता सामने नहीं आया है, लेकिन हाईकमान हुड्डा को हार के बाद भी फुल पावर देने से बच रहा है। उसे लगता है कि इससे यह संदेश जाएगा कि हुड्डा को हर हाल में समर्थन है। इसके अलावा कुमारी सैलजा का खेमा दलितों की उपेक्षा वाले नैरेटिव को आगे बढ़ा सकता है। इससे भाजपा ही मजबूत होगी, जिसने विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा उठाया था।
हालात यह हैं कि लड़ाई अब खुलकर जारी है। बयानबाजी हो रही है और एक-दूसरे के खिलाफ ऐक्शन की मांगें भी उठ रही हैं। लेकिन अब तक हाईकमान का कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है और न ही नेता विपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष चुनने की कोई प्रक्रिया शुरू हुई है। साफ है कि हुड्डा को हटाने का जोखिम भी हाईकमान नहीं लेना चाहता और उन्हें बढ़ाने में भी रिस्क लग रहा है। इस तरह हाईकमान की बेबसी सामने है। इस बेबसी का फायदा कुमारी सैलजा, भूपिंदर हुड्डा समेत हर गुट उठाना चाहता है। यहां तक कि हाल ही में भाजपा से आए चौधरी बीरेंद्र सिंह तक ने उदयभान के इस्तीफे की मांग उठा दी है।
सैलजा गुट के कई लोगों की नजर प्रदेश अध्यक्ष के पद पर
कुमारी सैलजा के समर्थक कहे जाने वाले शमशेर सिंह गोगी ने तो साफ कह दिया कि भूपिंदर हुड्डा और उनके बेटे दीपेंदर ने ही टिकट बांटे थे। इन लोगों के मनमाने टिकट बंटवारे के चलते ही हार हुई। हालात यह हैं कि हार के लिए बलि के बकरे खोजे जा रहे हैं और चाकू निकल चुके हैं। फिलहाल उदयभान ने 7 जिलों के प्रभारी बदल दिए हैं। वहीं सैलजा गुट के कई लोगों की नजर प्रदेश अध्यक्ष के पद पर है। फिलहाल हरियाणा यूनिट के लोग आपस में ही हिसाब बराबर करने में जुटे हैं। हाईकमान ना तो इस गुटबाजी पर लगाम कस पा रहा है और न ही नेतृत्व में बदलाव के लिए कोई दिशा तय कर पा रहा है। ऐसी स्थिति में आने वाले कुछ महीनों में होने जा रहे निकाय चुनावों को लेकर भी पार्टी की चिंताएं बढ़ गई हैं।