ईरान से भारत आए पारसियों के सबसे बड़े धर्मगुरू, पहली बार है यह आधिकारिक यात्रा
जोराष्ट्रीयन (पारसी) धर्म के सबसे बड़े धार्मिक नेता सदियों बाद अपनी दस दिवसीय भारत यात्रा पर हैं। पौलादी ने कहा कि उनकी इस यात्रा का उद्देश्य भारत में पारसियों के अनुष्ठानों और समारोहों को देखना और दोनों देशों के समुदायों के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना है।
भारत और ईरान के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत विस्तार देने के लिए ईरान के जोराष्ट्रीयन धर्म के सबसे बड़े धर्मगुरू अपनी पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत आए हैं। भारत में पारसी धर्म के नाम से जाना जाने वाला जोराष्ट्रीयन धर्म की जड़े ईरान से ही जुड़ी हुई हैं। 8वी सदी में ईरान (फारस ) छोड़कर भारत आए पारसी सदियों तक अपने रीति-रिवाजों से जुड़े रहे। लेकिन फिर सदियों बाद अपने धार्मिक रीति-रिवाजों को फिर से सीखने के लिए गुजरात से एक पारसी नरीमन होशंग ईरान की यात्रा पर गए थे। उनकी उस यात्रा के बाद यह पहली बार है, जब ईरान से कोई पारसी धर्मगुरू भारत यात्रा पर हैं।
काउंसिल ऑफ ईरानी मोबेड्स (पुजारियों) के अध्यक्ष मोबेद मेहरबान पौलादी पहली बार अपनी दस दिवसीय भारत यात्रा पर आए हैं। यहां पर उनकी मेजबानी पारसी समुदाय कर रहा है। पौलादी की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ईरान के 20 हजार और भारत के 80 हजार पारसियों के बीच में शुरूआत से ही एक सांस्कृतिक संबंध रहा है, लेकिन सबसे बड़े धर्मगुरू की आधिकारिक यात्रा अभी तक नहीं हुई थी।
मीडिया से बात करते हुए पौलादी ने कहा कि पूर्व धर्मगुरू नरीमन होशंग ( गु्जरात के रहने वाले पारसी, जो धार्मिक प्रथाओं का अध्ययन करने के लिए ईरान गए थे) की ईरान यात्रा के बाद यह पहली बार है कि ईरान से कोई भारत आ रहा हो। मैंने भारत की आधिकारिक यात्रा पर जाने का फैसला लिया है। मैं वहां जाकर देखना चाहता हूं कि वहां पारसी अपने अनुष्ठान और समारोह कैसे करते हैं।
दस दिवसीय भारत यात्रा के दौरान पौलादी भारत में कई महत्वपूर् पारसी स्थलों को देखेंगे। इसमें मुंबई और दक्षिणी गुजरात के उदयवाड़ा गांव में प्राचीन अग्नि मंदिर और नवसारी की यात्रा भी शामिल है।
पौलादी के मुताबिक उनकी इस यात्रा का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय और ईरानी पुजारियों के बीच संयुक्त बैठक और दोनों समुदाओं के बीच आपसी सहयोग की भावना को बढ़ावा देने शामिल है।