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फैसला दें उपदेश नहीं, 'सेक्स की इच्छा' वाली टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट की नसीहत

  • Supreme Court: मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच कर रही थी। बेंच ने कहा, 'जज को केस पर फैसला देना चाहिए और उपदेश नहीं देना चाहिए। फैसले में गैर जरूरी और बेमतलब की बात नहीं होनी चाहिए।

Nisarg Dixit लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 21 Aug 2024 06:31 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों को 'उपदेश' देने से बचने की सलाह दी है। दरअसल, मंगलवार को ही अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट का एक फैसला पलटा है, जिसकी सुनवाई के दौरान जज ने किशोरियों को 'सेक्स की इच्छा' पर नियंत्रण रखने की सलाह दी थी। एपेक्स कोर्ट ने जजों को फैसला सुनाने के दौरान निजी विचार रखने से भी बचने की सलाह दी है। सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से रेप के आरोपी को फिर दोषी करार दिया है।

उपदेश देने से बचें जज: सुप्रीम कोर्ट

मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच कर रही थी। बेंच ने कहा, 'जज को केस पर फैसला देना चाहिए और उपदेश नहीं देना चाहिए। फैसले में गैर जरूरी और बेमतलब की बात नहीं होनी चाहिए। फैसला सामान्य भाषा में हो और कम शब्दों में होना चाहिए...।' कोर्ट ने यह भी कहा कि फैसला न ही थीसिस है और न ही साहित्य है।

निजी विचार न रखें

बेंच ने कहा, 'इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कोर्ट हमेशा पार्टियों के आचरण पर टिप्पणी कर सकता है। हालांकि, पार्टियों के आचरण के संबंध में निष्कर्ष ऐसे आचरण तक ही सीमित होना चाहिए, जिसका असर फैसले पर पड़ रहा हो। कोर्ट के फैसले में जज के निजी विचार शामिल नहीं किए जाने चाहिए।'

परिवार पर उठाए सवाल

अदालत ने कहा, 'दुर्भाग्य से हमारे समाज में ऐसे कई मामले हैं, जहां POCSO एक्ट के अपराध के पीड़ितों के माता-पिता पीड़ितों को छोड़ देते हैं। फिर चाहे कारण जो भी हों। ऐसे मामलों में उन्हें घर, खाना, कपड़ा, शिक्षा के मौके आदि देना राज्य की जिम्मेदारी है। यहां तक कि ऐसे पीड़ित अगर बच्चे को जन्म दे दें, तो उनकी देखभाल भी इसी तरह करना राज्य का काम है।'

उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी, जिसे यौन उत्पीड़न के मामले में 20 साल की सजा सुनाई गई थी। हाई कोर्ट ने इस व्यक्ति को बरी कर दिया था।

ताजा मामले को लेकर कोर्ट ने कहा, 'दुखद है कि इस ताजा मामले में स्टेट मशीनरी पूरी तरह से असफल रही है। कोई भी पीड़िता के बचाव के लिए नहीं आया। ऐसे में जीवित रहने के लिए उसके पास आरोपी के साथ रहने के आलावा कोई भी रास्ता नहीं बचा था।'

कोर्ट ने क्या कहा था

18 अक्टूबर 2023 के इस विवादित फैसले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि किशोरियों को 'यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए', क्योंकि 'जब वह मुश्किल से दो मिनट का यौन सुख लेने के फेर में पड़ जाती है', तब वह 'समाज की नजरों में बुरी बन जाती है।'

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