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क्या था संविधान का पहला संशोधन, जिसका अमित शाह ने जिक्र किया तो विपक्ष करने लगा हंगामा

  • गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि संविधान संशोधन में यह देखने वाली बात है कि किसने देश के नागरिकों की भलाई के लिए संशोधन किए और किसने अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए इसमें बदलाव किए।

Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तानTue, 17 Dec 2024 08:21 PM
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‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ विषय पर राज्यसभा में दो दिन तक चर्चा चली। इस पर जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत का संविधान किसी की नकल नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में विभिन्न देशों के संविधानों की अच्छी बात लेने के साथ-साथ इसमें अपने देश की परंपराओं का पूरा ध्यान रखा गया है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने 16 साल शासन किया जिसमें 22 बार संविधान में संशोधन किया गया। कांग्रेस ने 55 साल शासन किया और इस दौरान उसने संविधान में 77 बार परिवर्तन किए।

गृह मंत्री ने दावा किया कि संविधान संशोधन में यह देखने वाली बात है कि किसने देश के नागरिकों की भलाई के लिए संशोधन किए और किसने अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए इसमें बदलाव किए। उन्होंने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी सरकार के शासनकाल में किए गए संविधान संशोधनों का उल्लेख किया। शाह ने कहा कि संविधान में पहला संशोधन नागरिकों के मूलभूत अधिकार में कटौती करने के लिए लाया गया था। चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर संविधान का पहला संशोधन क्या था और क्यों अमित शाह के इसका जिक्र करते ही विपक्ष हंगामा करने लगा।

क्या था संविधान का पहला संशोधन

संविधान का पहला संशोधन साल 1951 में हुआ था। इसके जरिए अनुच्छेद 15, 19, 85, 87, 174, 176, 341, 342, 372 और 376 में संशोधन किया गया। कानून की रक्षा के लिए संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था हुई। भूमि सुधारों और अन्य कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए 9वीं अनुसूची जोड़ दी गई। इसके बाद अनुच्छेद 31 और अनुच्छेद 31ए और 31बी जोड़े गए।

आर्टिकल 31 के तहत 9वीं अनुसूची में रखे गए कानूनों को इस आधार पर न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है कि उन्होंने नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। अनुच्छेद 31 (A) के तहत राज्य को संपत्ति के अधिग्रहण या सार्वजनिक हित में संपत्ति व निगम के प्रबंधन के संबंध में शक्ति निहित हुई। इसका मकसद ऐसे अधिग्रहणों को अनुच्छेद 14 और 19 के तहत न्यायिक समीक्षा से छूट देना था।

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