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कोई सबूत नहीं, यह न्याय का मजाक, बांग्लादेश में चिन्मय दास को बेल नहीं मिलने पर भड़कीं पूर्व राजदूत

  • बांग्लादेश में पूर्व राजदूत रहीं वीना सीकरी ने कहा कि प्रोफेसर यूनुस ने चिन्मय दास के मामले के बारे में बात तक नहीं की। उन्होंने सिर्फ एक वकील के बारे में बात की, जिसकी मृत्यु हो गई थी और वह सिर्फ इसी बारे में अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे।

Madan Tiwari लाइव हिन्दुस्तानThu, 2 Jan 2025 03:27 PM
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बांग्लादेश की एक कोर्ट ने इस्कॉन के पूर्व पुजारी चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को जमानत देने से इनकार कर दिया है। चटगांव कोर्ट के इस फैसले पर बांग्लादेश में भारत की पूर्व राजदूत वीना सीकरी ने गहरी निराशा व्यक्त करते हुए इसे न्याय का मजाक बताया। साथ ही यह भी बताया कि कोई सबूत नहीं दिया गया है। सीकरी ने चिन्मय के खिलाफ देशद्रोह के आरोपों का समर्थन करने वाले सबूतों की कमी पर भी प्रकाश डाला। न्यूज एजेंसी 'एएनआई' से बात करते हुए सीकरी ने कहा, "मुझे लगता है कि यह बहुत दुखद है। यह दुखद है। यह न्याय का उपहास है कि चिन्मय कृष्ण दास को एक बार फिर जमानत देने से इनकार कर दिया गया। आप जानते हैं, उनकी गिरफ्तारी का कारण भी, उन्होंने उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया है, लेकिन कोई सबूत नहीं दिया गया है।''

उन्होंने आगे कहा कि वे 25 अक्टूबर को किसी रैली के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है... चटगांव अदालत में मामला दर्ज किया गया और चिन्मय दास को ढाका हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया और फिर चटगांव ले जाया गया। उस समय, जमानत देने से इनकार कर दिया गया जो बहुत ही असामान्य था और अदालत में वकीलों और समर्थकों के बीच भारी झड़प हुई और उसमें एक वकील की मौत हो गई। सीकरी ने बांग्लादेश सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की चुप्पी पर भी सवाल उठाया है।

उन्होंने आगे कहा, "...प्रोफेसर यूनुस ने चिन्मय दास के मामले के बारे में बात तक नहीं की। उन्होंने सिर्फ एक वकील के बारे में बात की, जिसकी मृत्यु हो गई थी और वह सिर्फ इसी बारे में अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे। इसलिए यह बहुत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है और राष्ट्रीय न्याय के सभी सिद्धांतों, मानवीय पहलुओं के सभी सिद्धांतों के विरुद्ध है। आज बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ जो कुछ हो रहा है, वह वाकई अविश्वसनीय है।'' सिकरी ने कानूनी कार्यवाही की भी आलोचना की, पिछली सुनवाई के दौरान उचित प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति को नोट किया और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों को संभालने में न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर सवाल उठाया।

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इसके अलावा, विदेश मामलों के विशेषज्ञ रोबिंदर सचदेवा ने भी चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की जमानत याचिका खारिज किए जाने की आलोचना की और कहा कि बांग्लादेशी न्यायपालिका शायद सरकारी प्रभाव या हिंदू अल्पसंख्यकों के बारे में पक्षपातपूर्ण धारणाओं के तहत काम कर रही है। उन्होंने तर्क दिया कि चिन्मय के खिलाफ आरोप गंभीर नहीं हैं और उन्हें जमानत मिलनी चाहिए, साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की कार्रवाई देश में इस्लाम को प्राथमिक धर्म और संस्कृति के रूप में स्थापित करने के प्रयास को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि बांग्लादेश की न्यायपालिका व्यवस्थित रूप से सरकार के निर्देशों या हिंदू अल्पसंख्यकों के तत्वों और उनके खिलाफ मामलों से एक निश्चित तरीके से निपटने की धारणाओं पर काम कर रही है। चिन्मय के खिलाफ आरोप गंभीर नहीं हैं। उन्हें जमानत मिलनी चाहिए... ऐसा लगता है कि न्यायपालिका एक नए बांग्लादेश की विचारधाराओं का पालन कर रही है, जहां वे इस्लाम को देश में प्राथमिक धर्म, प्राथमिक संस्कृति बनाना चाहते हैं।

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